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श्री नमस्कार महामंत्र
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की प्रवृत्ति के लिए अयोग्य रहता है । इसलिए चूलिका महित समग्र श्री नमस्कार का महामंत्र के तौर पर प्रतिपादन किया गया है । एसो पंच नमुक्कारो सव्व-पाव-प्पणासणो7 - इन पंच परमेष्ठियों को किया हुआ नमस्कार सर्व पापों का नाश करता है। ___ इन पाँच को किया गया नमस्कार अर्थात् अपनी बुद्धि में अभी जो उपस्थित है, वैसे उत्तम गुणसंपन्न अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु - इन पाँचों को किया गया नमस्कार सर्व पापों का नाश करता है ।
इन शब्दों को बोलते ही मार्गदर्शक-अरिहंत परमात्मा, निराकुल - स्थिर सुख के भोक्ता-सिद्ध भगवान, महान आचारसंपन्न आचार्य भगवंत, विनय युक्त और सूत्र-प्रदान करते हुए उपाध्याय भगवंत और मोक्षमार्ग की साधना करनेवाले मुनि भगवंत अपनी नजर के सामने आते हैं । जिसके कारण उनके प्रति अत्यन्त बहुमान भाव पैदा होता है । गुणवान के प्रति उत्पन्न हुआ बहुमान भाव गुणप्राप्ति के लिए आवश्यक वीर्य को बढ़ाता है । गुण के प्रति हुई वीर्यवृद्धि मोक्षमार्ग में प्रतिकूल मोहनीय आदि कर्मों के अनुबंधों का नाश करती है और संसार को मर्यादित करती है, इसीलिए कहा गया है कि, इन पाँचों को किया गया नमस्कार सर्व पापों का नाश करता है ।
जिज्ञासा : यदि पाँचों को किया हुआ नमस्कार सर्व पापों का नाश करता है, तो एक बार नमस्कार करने से हमारे सब पाप नाश हो जाने चाहिए और हम भी कर्म-रहित बन जाने चाहिए । तो फिर बार-बार क्यों नमस्कार करना पड़ता है ? और बार-बार नमस्कार करने पर भी हमारे सब पाप नाश क्यों नहीं होते ?
तृप्ति : पंच परमेष्ठी को सामर्थ्ययोग से नमस्कार किया जाए, तो जरूर तत्काल सर्व पाप नाश हो जाते हैं । जब तक इस सामर्थ्ययोग की प्राप्ति
37.इन दोनों अध्ययन में तीन - तीन पद और आठ - आठ अक्षर हैं ।