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________________ सूत्र संवेदना जिज्ञासा : श्री नवकार मंत्र के इन पाँचों पदों में अन्वय के अनुरूप 'अरिहंताणं नमो' इत्यादि पाठ न रखकर 'नमो अरिहंताणं' पाठ क्यों रखा? तृप्ति : “नमो” शब्द विनय को प्रकट करता है । धर्मरूपी वृक्ष का मूल विनय है । वंदन अथवा नमस्कार द्वारा यह विनय प्रकट होता है, इसलिए यहाँ "धर्म प्रति मूलभूता वन्दना" यह दर्शाने के लिए 'अरिहंताणं' के पूर्व 'नमो' का प्रयोग किया गया है । इससे अतिरिक्त, आराधना और आराध्य, इन दोनों में आराधना का महत्त्व अधिक है, क्योंकि आराध्य तो सभी को समान ही प्राप्त होते हैं, परन्तु जिसकी जैसी आराधना होती है, उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है। इसलिए वंदन अथवा नमस्कार रूप आराधना का महत्त्व प्रदर्शित करने के लिए 'नमो' शब्द पहले रखा गया है । चूलिका : प्रथम पाँच पद के बाद जो शेष चार पद हैं वे चूलिका हैं, चूला = शिखर अर्थात् शिखर की तरह जो शोभता है, उसे चूला कहते हैं । मूल सूत्र में जो न बताया हो, वह वर्णन जिसमें बताया गया है, वह चूलिका है । प्रथम पाँच पदों में मात्र पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है और चूलिका में नमस्कार का फल बताया गया है ।। जिज्ञासा : यदि नौ पद के अंतिम चार पदों में नमस्कार के फल का वर्णन है, तो फल के वर्णन को भी क्या मूलमंत्र माना जा सकता है ? तृप्ति : श्री नमस्कार मंत्र के अंतिम चार पद, श्री नमस्कार मंत्र की चूलिका है । चूलिका को मूलमंत्र से भिन्न मानना योग्य नहीं है । फल का वर्णन भी श्री नमस्कार का वर्णन ही है । जैसे शिखर के बिना मंदिर अधूरा रहता है, वैसे ही चूलिका के बिना, नवकार के पाँच पद भी अधूरे रहते हैं । तथा जिस प्रवृत्ति के फल का ज्ञान न हो, उसमें प्रायः विद्वान प्रवृत्ति नहीं करते । इसी कारण चूलिका के बिना श्री नमस्कार मंत्र अपूर्ण और विद्वानों
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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