SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९ श्री नमस्कार महामंत्र ५. साधु भगवंत मोक्षमार्ग में सहायक होने के कारण भव्य आत्माओं के परम उपकारक हैं, इसलिए वे पूजनीय हैं । प्रथम पाँच पद संबंधी जिज्ञासा : जिज्ञासा : प्रथम पाँचों पदों में प्रत्येक पद के साथ 'नमो' पद रखा है । इसके बदले यदि एक ही पद में नमो पद का कथन किया होता, तो बाकी के चारों पदों में 'नमो' अध्याहार से (by inference ) ग्रहण किया जा सकता था, तो फिर प्रत्येक पद में 'नमो' पद रखने का क्या प्रयोजन है ? तृप्ति : श्री नमस्कार महामंत्र तीन प्रकार से गिना जा सकता है । पूर्वानुपूर्वी, अनानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी । इसमें पूर्वानुपूर्वी से गिनने से प्रथम पद के 'नमो' पद का प्रयोग शेष चारों पद में अध्याहार से आ सकता है । लेकिन पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी से गिनती करने पर 'नमो' पद का अन्य पाँचों पद में प्रयोग करना जरूरी बनता है । इसलिए प्रत्येक पद में 'नमो' रखा गया है । जिज्ञासा : पाँच को नमस्कार करना क्यों जरूरी है ? यदि संक्षेप सें करना हो, तो सिद्ध और साधु को करना चाहिए, क्योंकि साधुपद में अरिहंत, आचार्य और उपाध्याय तीनों का समावेश हो ही जाता है; क्योंकि अरिहंतादि में भी साधुता होती ही है और अगर विस्तार से नमस्कार करना हो, तो ऋषभादि तीर्थंकर भगवान के व्यक्तिगत नामोच्चारणपूर्वक करना चाहिए ? तृप्ति : जिस तरह मनुष्य को नमस्कार करने से राजा इत्यादि को नमस्कार करने का फल प्राप्त नहीं होता, उसी तरह मात्र साधु को नमस्कार करने से अरिहंतादि को नमस्कार करने का फल प्राप्त नहीं होता । इसलिए अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय का साधु में समावेश होने पर भी विशेष लाभ के हेतु से अलग-अलग नमस्कार किया जाता है और अगर व्यक्तिगत नमस्कार करें, तो व्यक्ति अनंत होने से प्रत्येक का नाम ग्रहण करके नमस्कार करना असंभव है ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy