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सूत्र संवेदना 'नमो लोए सव्व साहूणं' बोलते समय करने योग्य भावना :
यह पद बोलते हुए लोक में रहे हुए सर्व साधु भगवंतों को ध्यान में लाकर साधक सोचता है -
"मुनि भगवंत मोक्षमार्ग की कितनी सुंदर साधना कर रहे हैं तथा मोक्षमार्ग में वे कितने सहायक बनते हैं । मोक्षमार्ग की आराधना करने की वृत्ति या अन्य की सहायता करने की उदारवृत्ति मेरे में नहीं है, तो भी उनको किए हुए इस नमस्कार द्वारा मेरी स्वार्थवृत्ति दूर हो एवं मोक्षमार्ग पर चलने का सत्त्व प्रगट हो,
ऐसी प्रार्थना करता हूँ ।” पंच परमेष्ठी की पूज्यता:
इन पाँच पदों द्वारा जिनको नमस्कार किया गया है, उन अरिहंतादि में निम्नोक्त पाँच गुणों के कारण पूज्यता है ।
१. संसार रूप गहन वन में भ्रमण करते-करते पीड़ित जीवों को श्री अरिहंत भगवंत सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यग्चारित्र स्वरूप परमपद का मार्ग बतातें हैं, इसलिए वे मार्गदर्शक हैं । मार्ग की देशना द्वारा सर्व जीवों पर उपकार करने के कारण अरिहंत भगवंत पूज्य हैं ।
२. सिद्ध परमात्मा अविनाशी अनंत चतुष्टय को धारण करते हैं, ध्रुव के तारे की तरह भव्य आत्माओं के अत्यन्त उपकारक होने के कारण सिद्ध भगवंत पूज्य हैं।
३. आचार्य भगवंत भी भव्य जीवों को ज्ञानादि आचार के उपदेशक होने के कारण उपकारी हैं, इसलिए वे पूजनीय हैं ।
४. उपाध्याय भगवंत अपने शिष्यों को जिनोक्त शास्त्रों का अध्ययनअध्यापन करवाने में सदा तत्पर रहते हैं और शिष्यों को विनय गुण सिखाते हैं, इस प्रकार उपाध्याय भगवंत भव्य जीवों के अत्यन्त उपकारी हैं, इसलिए वे नमस्करणीय हैं ।