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________________ सूत्र संवेदना एक तो सामान्य केवली भगवंतों का ग्रहण अन्य किसी पद में नहीं होता है । उनका समावेश इस पद में करने के लिए 'सव्व' शब्द का प्रयोग है । केवली भगवंत - अरिहत के समान अतिशय और ऋद्धिवाले नहीं होते, इसलिए वे अरिहंत नहीं होते । उनके आठ कर्मों का नाश नहीं होने के कारण सिद्ध पद में भी उनका समावेश नहीं होता । वे आचार्य भगवंत की तरह शासन की समग्र धुरा वहन करने का कार्य नहीं करते । इसलिए आचार्यपद में भी उनका समावेश नहीं होता । __- केवलज्ञान के बाद वे उपाध्याय भगवंत की तरह किसी को पठनपाठन करवाने का कार्य भी नहीं करते, इसलिए उपाध्याय पद में भी उनका समावेश नहीं होता । इसी कारण से सामान्य केवली भगवंतों को साधु पद में ग्रहण करके, उनको भी नमस्कार करने के लिए 'सव्व' शब्द का प्रयोग किया गया है । इसके अलावा 'सव्व' शब्द का अर्थ 'सर्वज्ञ संबंधी' करके; जो सर्वज्ञ भगवंत द्वारा बताए हुए मार्ग पर चल रहे हैं, राग-द्वेषादि कषाय के नाश के लिए जो उद्यम कर रहे हैं, ऐसे साधुओं का ही इस पद में समावेश किया गया है, अन्य का नहीं । इससे यह निश्चित होता है कि यहाँ मात्र वेशधारी को वंदन नहीं किया जाता; बल्कि जो साधु के गुणों से युक्त हैं, उन सभी को वंदन करने के लिए 'सव्व' पद रखा गया है । सभी गुणवान पुरूष किसी भी भेदभाव के बिना नमस्कार करने लायक हैं, यह बताने के लिए भी यहाँ सर्व शब्द का प्रयोग किया गया है । इसी न्याय से 'सर्व' शब्द का अन्वय अरिहंत वगैरह पदों में भी समझना चाहिए। इस तरह लोए शब्द का अन्वय भी पाँचों पदों के साथ करके, उसके द्वारा संपूर्ण क्षेत्र में रहे हुए त्रिकालवर्ती अरिहंतादि पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार करना है। सव्व साणं के मिन्न-भिन्न अर्थ : 'सव्व-साहूणं' शब्द के विविध अर्थ इस प्रकार से समझाए जा सकते हैं -
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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