________________
श्री नमस्कार महामंत्र
. .
४५
के जीवों की रक्षा करनेवाले २, पाँच इन्द्रियों पर संयम रखनेवाले", तीन गुप्तियों का पालन करनेवाले", लोभ का निग्रह करनेवाले", क्षमा के धारकरे, निर्मल चित्तवाले२, वस्त्रादि की शुद्ध पडिलेहणा करनेवाले२४, संयम योग में उद्युत५, परिषहों को सहन करनेवाले ६ तथा उपसर्गों को सहन करनेवाले. साधु शब्द के मित्र मिन्न अर्थ :
लोच, विहारादि अत्यंत कष्टकारक क्रियाएँ करते हुए , घोर तप आदि अनुष्ठानों द्वारा अनेक व्रत, नियम, विविध प्रकार के अभिग्रह से युक्त होकर, जो संयम का पालन करते हैं तथा सम्यक् प्रकार से परिषह - उपसर्गादि कष्टों को सहन करते हुए जो मोक्ष की साधना करते हैं, वे साधु35 कहलाते हैं। __ श्री भद्रबाहुस्वामी ने कहा है कि, जिस कारण से साधु निर्वाण साधक योगों की साधना करते हैं और सर्व प्राणियों के ऊपर समवृत्ति (को) धारण करते हैं, इस कारण से वे भावसाधु36 कहलाते हैं ।
ज्ञानादि शक्ति के द्वारा जो मोक्षमार्ग की साधना करते हैं, सर्व जीवों के ऊपर जो समान बुद्धि धारण करते हैं और संयम पालन करनेवाली आत्माओं की जो सहायता करते हैं, वे साधु हैं । 'सव्व' शब्द का प्रयोजन : ___ यहाँ एक बात उल्लेखनीय है कि - अरिहंताणं, सिद्धाणं, आयरियाणं उवज्झायाणं और साहूणं-इन पाँचों पदों में बहुवचन का उपयोग किया गया है । फिर भी चार पदों में 'सव्व' शब्द नहीं है, जब कि पाँचवें पद में 'सव्व' शब्द का उपयोग किया गया है, इसके भी कई विशिष्ट कारण हैं ।
35.स्व-परहितं मोक्षानुष्ठानं वा साधयतीति साधुः। 36.निव्वाण - साहुए जोगे, जम्हा साहन्ति साहुणो ।
समो य सव्वभुएसु, तम्हा ते भावसाहुणो । ।।१००२ । ।