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________________ श्री नमस्कार महामंत्र ४१ उप = समीप में अधि = अधिवसनात् = निवास करने के कारण, आय = लाभ अर्थात् जिनके समीप निवास करने से श्रुत का लाभ होता है, उनको उपाध्याय कहते हैं । ४. उप = उपहत = नाश करना, आधि = मन की पीडा, आय = लाभ अर्थात् जिनके द्वारा मन की पीड़ा के लाभ का या दुर्ध्यान के लाभ का नाश होता है, उन्हें उपाध्याय कहते हैं । ५. उप = नाश करना, अधि = कुबुद्धि, आय = लाभ अर्थात् जिनके द्वारा कुबुद्धि के लाभ का नाश किया जाता है, उन्हें उपाध्याय कहते हैं । ६. उ = उपयोगपूर्वक व = पाप का वर्जन करना, ज्झा = ध्यान करना य = कर्मों को दूर करना अर्थात् उपयोगपूर्वक पाप को छोड़कर ध्यानारूढ़ होकर जो कर्मों को दूर करते हैं, उन्हें उपाध्याय कहते हैं । ७. उपाधि अर्थात् सुंदर विशेषण, आय = लाभ - जिनके पास (पढ़ने से) सुंदर विशेषणों का लाभ होता है, उन्हें उपाध्याय कहते हैं । उपाध्याय भगवंत का ध्यान किस वर्ण से और क्यों : उपाध्याय भगवंतों का नीलवर्ण से ध्यान किया जाता है, क्योंकि, १. नीलमणि की प्रभा जैसी शांत और मनोरम होती है, वैसे ही उपाध्याय भगवंत की कांति प्रशांत और मनोरम होती है । २. जैसे पानी के सिंचन से हराभरा हुआ बगीचा अनेक लोगों के चित्त को आकर्षित करता है और मन को शांति देता है, वैसे ज्ञानरूपी जल से शिष्यों का सिंचन करते हुए उपाध्याय भगवंत समुदाय को हराभरा रखकर अनेकों के चित्त को आकर्षित करते हैं और अनेक आत्माओं को शांति और समाधि प्रदान करते हैं । ३. मंत्रशास्त्र में अशिव उपद्रव को दूर करने के लिए नीलवर्ण को श्रेष्ठ बताया गया है । उपाध्याय भगवंत ज्ञानमार्ग में आनेवाले उपद्रव को दूर करते हैं, इसलिए नीलवर्ण से उनका ध्यान किया जाता है ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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