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सूत्र संवेदना
संक्षेप में, श्री अरिहंत भगवंतों द्वारा प्ररूपित एवं गणधर भगवंतों द्वारा गूंथित श्रुतज्ञान का यथार्थ अध्ययन करके, उपाध्याय भगवंत अन्य साधुमुमुक्षुओं को योग्य शिक्षण देते हैं । इसलिए वे नमस्करणीय हैं ।
विनय एवं सूत्र-प्रदान आदि विशेष गुणयुक्त उपाध्याय भगवंतों को ध्यान में लाकर, उनके विविध गुणों को प्राप्त करने के संकल्प के साथ उनको नमस्कार किया जाए, तो अपने मान-अज्ञान आदि दोषों का नाश होता है एवं ज्ञान, नम्रता आदि गुणों का विकास होता है । उपाध्याय के २५ गुण :
ऐसे उपाध्याय भगवंतों के २५ गुण होते हैं । ११ अंग एवं १२ उपांग के जानकार, चरण-सित्तरी अर्थात् उत्तम चारित्र को हमेशा पालनेवाले तथा करणसित्तरी अर्थात् प्रसंग के अनुसार क्रिया करनेवाले, इस तरह २५ गुण होते हैं । शास्त्र में इन २५ गुणों का भी २५ प्रकार से वर्णन है । 'उपाध्याय' शब्द के भिन्न भिन्न अर्थ :
१. "उपाध्याय" शब्द में तीन शब्द हैं : उप+अधि+इ इसमें 'उप' अर्थात् समीप ‘अधि' अर्थात् आधिक्य एवं 'इ' धातु के तीन अर्थ होते हैं : अध्ययन करना, जानना एवं स्मरण करना, उसमें जब 'इ' धातु का अर्थ अध्ययन करना' करें तब, जिसके पास जाकर शास्त्र अध्ययन कर सकते हैं, उनको उपाध्याय कहते हैं । जब 'इ' का अर्थ जानना करें तब, जिनके पास जाकर आत्मा के नज़दीक हो सकें या आत्मा को जान सकें, उनको उपाध्याय कहते हैं । इसके अलावा जब 'इ' अर्थात् 'स्मरण करना' ऐसा अर्थ करते हैं तब, जिनके पास जाकर शास्त्र का स्मरण कर सकें, वे 'उपाध्याय' कहलाते हैं ।
२. उप = उपयोगेन, आ = समन्तात् और ध्याय = ध्यायन्ति अर्थात् जो उपयोगपूर्वक ध्यान करते हैं, वह उपाध्याय कहलाते हैं ।
3. 'उप समीपे अधिवसनात् श्रुतस्यायो लाभो भवति येभ्यस्ते उपाध्यायाः'