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श्री नमस्कार महामंत्र
उपाध्याय भगवंतों में मुख्य दो गुण होते हैं - विनय और सूत्र प्रदान करना है । उनमें उच्चतम कोटि का विनय होता है और अपने विनय द्वारा वे शिष्यवर्ग को विनय सिखाते हैं । तथा आचार्य भगवंत के पास से उनको जो ज्ञानादि की प्राप्ति हुई हो उनको वे गच्छ में 'प्रदान करने द्वारा सुंदर विनयन भी करते हैं ।
श्री भद्रबाहुस्वामी ने बताया है कि, जिन बारह अंगवाले स्वाध्याय की अर्थ से जिनेश्वर प्ररूपणा करते हैं एवं सूत्र से जिनको बुधों द्वारा = गणधरों द्वारा कहा गया है, उस स्वाध्याय का शिष्यों को उपदेश देनेवाले उपाध्याय कहलाते है ।
महानिशीथ सूत्र में बताया है कि, जिन्होंने आस्रव के द्वारों को बंद किया है, मन, वचन एवं काया के तीनों योगों में जो उपयोगवाले हैं, मात्रा, बिंदु, पद एवं अक्षरों से विशुद्ध द्वादशांगीरूप श्रुतज्ञान का विधिपूर्वक अध्ययन एवं अध्यापन करने के द्वारा जो अपने और दूसरों के मोक्ष का उपाय ध्यान में रखते हैं, वे उपाध्याय कहलाते हैं ।
उपाध्याय भगवंत आचार्य पद के अत्यंत समीप होते हैं । परवादी को जीतने में वे माहिर होते हैं । आचार्य भगवंत समस्त संघ के कार्यों में व्यस्त रहते हैं, इसलिए समग्र गच्छ के संचालन का कार्य उपाध्याय भगवंत संभालते हैं । सारणा-वायणा-चोयणा-पडिचोयणा द्वारा वे सर्व साधुओं को सन्मार्ग में प्रवर्तमान करने का कार्य करते हैं । आचार्य भगवंत जैनशासन के राजा समान हैं और उपाध्याय भगवंत अमात्य-मंत्री-युवराज समान हैं ।
उपाध्याय भगवंत संसार के भावों से अलिप्त होते हैं और गच्छवर्ती शिष्यों को भी सूत्र प्रदानादि द्वारा संसार के भावों से अलिप्त रखने का प्रयत्न करते हैं । उनका भी मुख्य ध्येय तो सिद्ध अवस्था ही है । इसलिए सिद्ध अवस्था की प्राप्ति के लिए जरूरी निराकांक्षता, निर्विकल्पता, परम समता आदि गुणों के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहते हैं । 31.बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिओ बुहेहिं । तं उवइसन्ति जम्हा, उवज्झाया तेण वुच्चन्ति
।।९९७ ।। (आ.नि.)