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सूत्र संवेदना ४. परवादी रूपी हाथियों के झुंड को भगाने के लिए आचार्य केशरी सिंह के समान हैं, सिंह की केशरा पीली होती है । इसलिए भी आचार्य का ध्यान पित्तवर्ण से किया जाता है।
५. मंत्रशास्त्र में पित्तवर्ण को स्थंभन के लिए श्रेष्ठ माना है । आचार्य परवादियों का स्थंभन करनेवाले होते हैं । इसलिए उनका ध्यान पित्तवर्ण से किया जाता है ।
'नमो आयरियाणं' पद बोलते समय करने योग्य भावना :
यह पद बोलते हुए साधक जैनशासन की उज्ज्वल परंपरा में अतीत में हो चुके तथा वर्तमान शासन की धुरा को वहन करनेवाले सर्व आचार्य भगवंतों को स्मरण में लाकर प्रार्थना करें,
"हे भावाचार्य भगवंतों ! आप अपनी शक्ति द्वारा कितनों को सन्मार्ग पर लाते हैं । आप स्वयं तो ज्ञानादि गुणों के कारणभूत आचारों का सुन्दर पालन करते हैं एवं अनेकों को करवाते भी हैं, आप का भक्त होकर भी मैं सन्मार्ग को समझ नहीं पाया और ऐसे आचारों का पालन भी नहीं कर पाया । हे भगवंत ! आप को नमस्कार करके प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझ में ऐसा बल प्रगट करें कि, मैं सन्मार्ग में स्थिर होकर अपनी आत्मा का
कल्याण करूँ ।” नमो उवज्झायाणं - उपाध्याय भगवंतों को नमस्कार हो ।
उपाध्याय भगवंत ४५ आगम के ज्ञाता होते हैं । वे जिनोक्त द्वादशांगी का अध्ययन करते हैं तथा सूत्र, अर्थ, उभय का विस्तार करने में लीन रहते हैं । गुरु परंपरा से प्राप्त जिनवचनों का अध्यापन करवाने के लिए वे सदैव प्रयत्नशील होते हैं, वे सूत्र प्रदान द्वारा समुदाय में ज्ञान गंगोत्री बहाकर सबको नवपल्लवित रखते हैं । 30.यह चौथा पद चौथा अध्ययन रूप है उसमें 'नमो', 'उव', 'ज्झायणं' ये तीन पद तथा सात
अक्षर हैं।