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सूत्र संवेदना
अंतर को जाननेवाले, द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव के आलंबन से अत्यंत मुक्त,
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बाल-वृद्ध-ग्लान-नवदीक्षित-साधर्मिक एवं साध्वी इन सब को मोक्षमार्ग की आराधना में प्रवर्तन करने में कुशल, ज्ञान- दर्शन - चारित्र - तप आदि गुणों के प्रभावक, दृढ सम्यक्त्ववाले, सतत (परिश्रमादि करते हुए भी) खेद न करनेवाले, धैर्य रखने में समर्थ, गंभीर, अतिशय सौम्य कांतिवाले, तपरूप तेज से सूर्य की तरह दूसरों से पराजित न होनेवाले, खुद का शरीर क्षीण होने पर भी षट्काय के समारंभ का त्याग करनेवाले, दान-शील-तपभावरूप चतुर्विध धर्म के अंतराय से डरनेवाले, सर्व प्रकार की आशातना के भीरू, ऋद्धि-रस- शाता इन तीन गारव एवं आर्त्त- रौद्र इन दो ध्यान से अत्यंत मुक्त, प्रतिकूल संयोग उपस्थित होते हुए भी अन्य की प्रेरणा होते हुए भी - अन्य के कहने से भी पाप न करनेवाले, बहुत निद्रा न लेनेवाले, बहु भोजन न करनेवाले, सर्व आवश्यक में स्वाध्याय में ध्यान में प्रतिमा में एवं अभिग्रह से नहीं उबनेवाले, घोर परिषह - उपसर्गों में खेद या भयभीत न होनेवाले, योग्य का संग्रह करने के स्वभाववाले, अयोग्य का त्याग करने की विधि के जानकार, मजबूत शरीरवाले, स्व-पर शास्त्र के मर्म के जानकार, क्रोध - मान-माया-लोभ- ममता-रति- हास्य-क्रीडा-काम- अहितवाद इन सबसे अत्यंत मुक्त, संसारवास एवं विषयों की अभिलाषावाले जीवों को धर्मकथा में रुचि उत्पन्न करवानेवाले एवं भव्य जीवों को प्रतिबोध करनेवाले हो, ऐसे व्यक्ति को गच्छ सौंपना योग्य हैं । इन उपर्युक्त गुणों से युक्त साधु ही गणी है, गणधर है, तीर्थ है, तीर्थंकर है, अरिहंत है, केवली है, जिन है, तीर्थ प्रभावक है, वंद्य है, पूज्य है, नमस्करणीय है, दर्शनीय है, परम पवित्र है, परम कल्याण है, परम मंगल है, सिद्धि है, मुक्ति है, शिव है, मोक्ष है, रक्षक है, सन्मार्ग'है, गति है, संकल्प है, सिद्ध, मुक्त, एवं पारंगत है । गौतम ! इन्हें गण निक्षेप की अनुज्ञा देनी चाहिए । अन्यथा आज्ञा भंग होता है ।
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उपर्युक्त विशिष्ट गुणसंपन्न व्यक्ति को ध्यान में रखकर, उनके गुणों के प्रति बहुमान भाव प्रगट करके, उनके गुणों की प्राप्ति के लिए उनको किया हुआ