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________________ श्री नमस्कार महामंत्र आगम आधारित भावाचार्य का स्वरूप : शास्त्रकारों ने अनेक तरीके से भावाचार्य का वर्णन किया है । महानिशीथ सूत्र के पाँचवें अध्ययन में भावाचार्य, को तीर्थंकरादि के तुल्य कहा गया है । गच्छ के अधिपति आचार्य कैसे गुणों से युक्त होते हैं, वह महानिशीथ आगम के निम्नलिखित वचनों से जाना जा सकता है । “हे भगवंत29 ! कैसे गुणों से युक्त गुरु को गच्छ सौंपना चाहिए ?” “हे गौतम ! जो उत्तम व्रतवाले, सुशील, दृढव्रतवाले, दृढ़ चारित्रवाले, अनिंदित अंगवाले, परिग्रह रहित, राग रहित, द्वेष रहित, मोह - मिथ्यात्व रूप मल के कलंक से रहित, उपशांत, संसार के स्वरूप को भलीभाँति जाननेवाले, महावैराग्य के मार्ग में अतिशय लीन, स्त्री - कथा, भक्त-कथा, स्तेन- कथा, राज- कथा एवं देश कथा के शत्रु, अत्यंत अनुकंपाशील, परलोक के अनर्थों से भयभीत, कुशील के दुश्मन, शास्त्र के भावों के जानकार, शास्त्र के रहस्यों के ज्ञाता, रात-दिन प्रतिसमय अहिंसादि लक्षणवाले, क्षमादि दस प्रकार के श्रमणधर्म में स्थित, रात-दिन हर समय बारह प्रकार के तपधर्म में उद्यमी, सतत पाँच समिति में अच्छी तरह से उपयोग रखनेवाले, सतत तीन गुप्तियों से सुगुप्त, स्व-शक्ति से ( शक्ति छिपाए बिना ) अठारह हजार शीलांगों के आराधक, स्व शक्ति से सतरह प्रकार के संयम के एकांत से अविराधक, उत्सर्गरुचि, तत्त्वरूचि, शत्रु-मित्र में समताभाववाले, सात भय स्थानों से अत्यंत मुक्त, आठ मदस्थानों से मुक्त, नव ब्रह्मचर्यगुप्ति की विराधना से भयभीत, बहुश्रुत, आर्यकुल में जन्म प्राप्त किए हुए, दीनता, कृपणता एवं प्रमाद से रहित, साध्वी वर्ग का संसर्ग न करनेवाले, सतत धर्मोपदेश देनेवाले, सतत ओघसामाचारी प्ररूपक, साधु मर्यादा में स्थित, सामाचारी भंगभीरु, आलोचना के योग्य जीवों को प्रायश्चित्त देने में समर्थ, वंदन, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, व्याख्यान, आलोचना, उद्देश्य एवं समुद्देश्य इन सात मांडली की विराधना के जानकार, द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव-भवांतर के 29. महानिशीथ का यह पाठ गुरुतत्त्व विनिश्चय उ. १. गा-३० की टीका में साक्षी रूप में उद्धृत हैं। ३५
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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