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________________ ३४ सूत्र संवेदना पंचविध आचार को चरितार्थ करनेवाले तथा प्ररूपणा करनेवाले हैं, तथा साधु प्रमुख को विशिष्ट आचार दर्शानेवाले होने से, उन्हें आचार्य कहते हैं । शासन के नायक होने से आचार्य भगवंत को बहुत मान-सन्मान-सत्कार मिलता है, किन्तु वे उसमें आसक्त नहीं होते । शासन प्रभावना के लिए होनेवाले उत्सव महोत्सव में उनकी उपस्थिति होने पर भी उन्हें उसकी आकांक्षा नहीं होती । वे सतत कर्मनिर्जरा की अपेक्षावाले होने से शासन के कार्यों के बीच भी अंतर से अप्रतिबद्ध (अलिप्त) रहते हैं । संक्षिप्त में, आचार्य पद के तमाम उत्तरदायित्व निभाते हुए भी सिद्धत्व के लक्ष्य को सामने रखकर, सब कार्यों द्वारा स्व और पर का आत्महित करनेवाले होते आचार्य के छत्तीस गुण : पंचिंदिय सूत्र में आचार्य के मुख्य छत्तीस गुणों का वर्णन किया गया हैं। आचार्य पाँच इन्द्रियों के विकार को निग्रह करनेवाले, ब्रह्मचर्य की नौ गुप्ति को धारण करनेवाले, चार कषायों से मुक्त, पाँच महाव्रतों के धारक, पाँच आचारों का पालन करनेवाले, पाँच समिति एवं तीन गुप्ति युक्त ३६ गुणों से सुशोभित होते हैं । शास्त्र में तो ऐसे ३६ गुणों का ३६ प्रकार से वर्णन किया गया है । आचार्य के दो प्रकार :.. आचार्य भगवंत भी मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं - द्रव्याचार्य एवं भावाचार्य । शास्त्रों में आचार्य के जो सामान्य गुण बताए हैं, वे भी जिनमें न हों, वे द्रव्याचार्य हैं एवं शास्त्र में जिन गुणों का वर्णन किया गया है, उन गुणों से युक्त हों, वे भावाचार्य कहलाते हैं । इस सूत्र द्वारा ऐसे भावाचार्यों को ही नमस्कार करना है, द्रव्याचार्यों को नहीं; क्योंकि भावाचार्य को किया गया नमस्कार ही कर्मनिर्जरा का एवं गुणप्राप्ति का कारण बनता है । द्रव्याचार्य को नमस्कार करने से आत्मा को कोई विशेष फायदा नहीं होता।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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