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श्री नमस्कार महामंत्र
सतत उसको कर्म से आच्छादित किया है । इसीलिए अनंत ज्ञान, अनंत सुख आदि गुणों की समृद्धि का मैं अनुभव नहीं कर सकता । आप की परम सुखमय अवस्था को लक्ष्य बनाकर मैं साधना करने का प्रयत्न करता हूँ । परन्तु मुझे उसमें सफलता नहीं मिलती । प्रभु ! कृपा करके मैं सफल होऊँ, ऐसा सत्त्व मुझ में प्रकट कीजीए ।”
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नमो आयरियाणं" - ' आचार्य भगवंतों को नमस्कार हो'
अरिहंत प्रभु की अनुपस्थिति में शासन का भार आचार्य भगवंत वहन करते हैं । शासन के सब कार्य उनकी सलाह के अनुसार होते हैं । श्री जैन शासन रूपी गगनमंडल में से तीर्थंकरदेवरूपी सूर्य और सामान्य केवलीरूपी चन्द्र अस्त होने के पश्चात् तीन लोक में स्थित पदार्थों को प्रकाशित करने के लिए आचार्य भगवंत दीपक समान हैं । वे जैन शासनरूपी राजभवन में राजा के स्थान पर हैं । सर्वशास्त्र के द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव तथा उत्सर्गअपवाद के वे ज्ञाता हैं । उनका मुख्य गुण शुद्ध मार्ग की प्ररूपणा करने का है ।
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इसीलिए महामहोपाध्यायजी आचार्य भगवंत का वर्णन करते हुए कहते हैं'शुद्ध' 7 प्ररूपक गुण थकी जे जिनवर सम भाख्या रे'
आचार्य भगवंत जब उपदेश देते हैं, तब सतत उनके सामने जिनागम होता है । जिनवचन के विरुद्ध एक भी शब्द बोलने से कितने भवभ्रमण बढ़ जाते हैं, उसका ख्याल होने से वे भगवान के वचनानुसार ही बोलते हैं ।
आचार्य भगवंत विशेष प्रकार से पाँच आचारों का पालन स्वयं करते हैं एवं दूसरों से भी करवाते हैं । श्री भद्रबाहुस्वामीने 28 बताया है कि आचार्य 26. यह तीसरा पद तीसरे अध्ययन रूप है, उसमें 'नमो' - 'आयरियाणं' ये दो पद तथा सात अक्षर है । 27. पद्मविजयजी कृत नवपद पूजा ।
28.पंचविहं आयारं, आयरमाणा तहा पभासंता । आयारं दंसंता, आयरिया तेण वुच्चन्ति । । ९९४ ।।
आवश्यक निर्युक्त