SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ सूत्र संवेदना आचार्य के उपदेश द्वारा अरिहंत पहचाने जाते हैं, तो क्या आचार्य को पहले नमस्कार करना चाहिए ? तृप्ति : आचार्य में उपदेश देने का सामर्थ्य अरिहंत के उपदेश से ही आता है । आचार्य स्वतंत्र रूप से अर्थ नहीं जानते, इसलिए परमार्थ से तो अरिहंत ही सर्व अर्थों को जाननेवाले हैं । तथा आचार्य वगैरह तो अरिहंत की पर्षदारूप हैं, इसलिए आचार्य को नमस्कार करके, अरिहंत भगवंत को नमस्कार करना ठीक नहीं है । कोई भी मनुष्य पर्षदा को प्रणाम करने के बाद राजा को प्रणाम नहीं करता, इसलिए प्रथम अरिहंत भगवंत को ही नमस्कार करना योग्य है । सिद्ध का ध्यान किस वर्ण से और क्यों ?: .. सिद्ध भगवंत का ध्यान लाल वर्ण से होता है, क्योंकि - १. मंत्र शास्त्र में रक्तवर्ण को वशीकरण का हेतु माना गया है । सिद्धात्मा योगी पुरुषों को आकर्षित कर रहे हैं, मुक्तिवधु को भी आकर्षित कर रहे हैं, इसलिए उनका वर्ण रक्त मानकर उनकी उसी प्रकार आराधना करनी चाहिए। २. गरम किया हुआ और मैल रहित शुद्ध, सुवर्ण जैसे लालवर्ण का हो जाता है, वैसे ही सिद्ध भगवंत भी तप द्वारा आत्मा को तपाकर सर्व कर्मक्षय करके निर्मल और विशुद्ध बनते हैं, इसलिए उनका ध्यान रक्तवर्ण से करना चाहिए । ३. तंदुरुस्त, रोग रहित, मनुष्य जैसे लाल बूंद जैसा होता है, वैसे ही सिद्ध भगवान कर्मरोग से सर्वथा रहित होने के कारण आरोग्य के प्रतीकरूप होते हैं, इसलिए उनका ध्यान रक्तवर्ण से करना चाहिए । 'नमो सिद्धार्ण' बोलते समय करने योग्य भावना : यह पद बोलते हुए अनंत सिद्ध भगवंतों को स्मृति पट पर लाकर नमस्कार करते हुए सोचना चाहिए, “हे परमात्मा ! मूल स्वरूप से तो मैं भी आप जैसा ही हूँ । साधना करके आपने अपना स्वरूप प्रकट किया है और मैंने
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy