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श्री नमस्कार महामंत्र
४. “सिद्ध" = गति, संसार में पुनः न आना पड़े, ।
इस तरह जो मोक्ष नगरी में गए हैं, मोक्षगति प्राप्त की है, वे सिद्ध
५. “सिद्ध” = शास्त्र-शासक; जो अपनी आत्मा का संपूर्ण शासक हो। शासक शास्त्र होता है, इसलिए सिद्ध ही शास्त्र हैं ।
६. “सिद्ध" = मंगल, जो मंगल स्वरूप हैं, वे सिद्ध हैं ।
७. “सिद्ध” = नित्य; जिनकी स्थिति का अंत नहीं होता, वे सिद्ध हैं । सिद्ध पहले या अरिहंत :
जिज्ञासा : अरिहंत भगवंतों का भी अंतिम लक्ष्य सिद्ध अवस्था है, तो जो मुख्य हों, उन्हें प्रथम नमस्कार करना चाहिए - ऐसे न्याय के अनुसार सिद्ध को पहले नमस्कार करना चाहिए, क्योंकि सिद्ध सर्वथा कर्म से मुक्त होने से कृतकृत्य हैं । तो फिर पहले अरिहंत भगवंत को नमस्कार क्यों किया गया है?
तृप्ति : जगत के हर एक प्राणी के ऊपर अरिहंत भगवंतों का अलौकिक उपकार है । वे तीर्थ का प्रवर्तन करके मोक्ष का मार्ग बताने स्वरूप महान उपकार करते हैं । इसके अलावा, सिद्ध की आत्माएँ भी
अरिहंतों के उपदेश से ही चारित्र को स्वीकार कर, कर्मरहित होकर सिद्धगति को प्राप्त करती हैं तथा अरिहंतों के उपदेश द्वारा ही सिद्ध भगवंत पहचाने जाते हैं । इसलिए प्रथम अरिहंत भगवंतों को नमस्कार करके उसके बाद सिद्ध भगवतों को नमस्कार करना योग्य है ।
व्यवहारनय की अपेक्षा से पहले अरिहंत का स्थान आता है, बाद में सिद्ध का एवं निश्चयनय की अपेक्षा से पहले सिद्ध, बाद में अरिहंत हैं । साधना करने के लिए व्यवहार का स्वीकार कर निश्चय तक पहुँचना है, इसलिए यहाँ प्रथम अरिहंत पद को स्थान दिया है ।
जिज्ञासा : सिद्ध भगवंत, अरिहंत के उपदेश से जाने जाते हैं, इसलिए प्रथम अरिहंत को नमस्कार करने को कहा गया है, तो वर्तमान काल में