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सूत्र संवेदना
स्थिर हो जाता है । अनंतकाल की दृष्टि से सोचें, तो ऐसा अनंतबार होने की संभावना है । इस प्रकार कर्मभूमि के सिवाय के स्थान पर भी अनंत सिद्ध हो सकते हैं । सिद्ध जीवों की संख्या :
एक समय में अधिक से अधिक १०८ जीव सिद्धावस्था को प्राप्त कर सकते हैं तथा ज्यादा से ज्यादा ६ महीने के भीतर एक जीव अवश्य सिद्धावस्था को प्राप्त करता है अर्थात् दो सिद्ध जीवों के बीच का विरहकाल अधिक से अधिक ६ मास का होता है । अभी तक अनंत जीवों ने सिद्ध गति प्राप्त की है एवं भविष्य में भी अनंत जीव सिद्धगति प्राप्त करेंगे । ऐसा होने के बावजूद जब भी अरिहंत भगवंत को पूछा जाए कि कितने जीव सिद्ध हुए हैं ? तो एक ही जवाब मिलता है एक निगोद के अनन्तवें भाग जितने जीव ही सिद्ध हुए हैं । 'सिद्ध' शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ :
१. “सि" = सितं अर्थात् बांधे हुए "द्ध" = ध्मातं; जिन्होंने बहुत दीर्घ काल से बंधे हुए आठ प्रकार के कर्मरूपी ईंधन को अति उग्र शुक्लध्यान रूपी अग्नि से जलाकर नाश कर दिया हो, वे सिद्ध हैं25 ।
२. “षिध्" = निष्ठा, जो सर्वथा कृतकृत्य हो चुके हैं, जिनका कोई भी कार्य अधूरा नहीं है, वे सिद्ध कहलाते हैं ।
३. “सिद्ध” अर्थात् प्रख्यात - प्रसिद्ध; जिनके गुणसमूह को भव्यजीव अच्छी तरह पहचानते हैं, उनको सिद्ध कहते हैं ।
‘षिध्' धातु गति, शास्त्र, मंगल आदि अर्थ में उपयोग किया जाता है, इसलिए इससे बने सिद्ध शब्द के निम्नलिखित अर्थ भी होते हैं ।
25.ध्मातं सितं येन पुराधाकर्म यो वा गतो निर्वृतिसौधर्मूर्ध्नि ख्यातोऽनुशास्ता परिनिष्ठितार्थो यः सोऽस्तु सिद्धः कृतमङ्गलो ।।
- श्री अभयदेवसूरिरचिता भगवतीसूत्र वृत्ति