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श्री नमस्कार महामंत्र
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लम्बी-चौड़ी एवं बीच में आठ योजन मोटी एवं किनारे में मक्खी के पंख सी पतली (तवे के आकारवाली) सिद्धशिला है । उसके ऊपर के भाग में याने लोक के अग्रभाग का स्पर्श करते हुए १६६ /, धनुष्य प्रमाण आकाश में कर्मरहित ऐसे सिद्ध के जीव स्थिर होते हैं । सिद्धशिला के ऊपर अनंत सिद्ध एक साथ, एक जगह पर एक ही आकाश प्रदेश का अवगाहन करके रहते हैं । जिज्ञासा : जहाँ एक सिद्ध आत्मा होती है, वहाँ दूसरे अनंत सिद्ध की आत्माएँ कैसे समा सकती हैं ?
तृप्ति : जैसे एक कमरे में एक दीपक की रोशनी हो और उसी कमरे में हजारों दीपक की रोशनी की जाए, तो उनका प्रकाश भी उसी कमरे में समाविष्ट हो जाता है, वैसे ही सिद्ध भगवंत की आत्माएँ शरीर आदि पुद्गल से रहित होने के कारण परस्पर एक दूसरे के आत्मप्रदेश में समाविष्ट हो जाती हैं ।
ढाई द्वीप के प्रमाण ४५ लाख योजन की लंबाई - चोड़ाईवाली और ठीक ढाई द्वीपके ऊपर रही हुई सिद्धशिला का कोई भी भाग ऐसा नहीं है, जहाँ अनंत सिद्ध न हो ।
जिज्ञासा : ढाई द्वीप में पन्द्रह कर्मभूमि में से ही सिद्ध हो सकते हैं, तो इसके अतिरिक्त दूसरे भाग में अथवा लवण आदि समुद्र के ऊपर के भाग में जो सिद्धशिला का भाग है, उस भाग में अनंत सिद्ध कैसे हो सकते हैं ?
तृप्ति : वैसे तो १५ कर्मभूमि में से ही जीव सिद्धगति में जा सकता है, यह राजमार्ग अथवा सामान्य विधान है । परन्तु कभी कोई देव किसी जीव का अपहरण करके अथवा अपने अपकार या उपकार का बदला लेने के लिए किसी साधक जीव को अन्य भूमि में रखे, या लवण समुद्र की भूमि पर ले जाए, तब यह जीव वहाँ रहकर, विशुद्ध अध्यवसाय में लीन होते हुए, शुक्लध्यान की प्राप्ति करके, आयुष्य पूर्ण करके, वहाँ से सीधे ऊँचे चढ़कर उसी आकाश प्रदेश की श्रेणी से अस्पृश्य गति से मोक्ष में जाता है, तब उस भूमि के ऊपर ही जो सिद्धशिला का भाग होता है, उस पर वह