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________________ सूत्र संवेदना राशि में आता है । हम भी इसी तरह किसी एक जीव की सिद्ध गति के कारण ही अव्यवहार राशि में से निकल कर व्यवहार राशि में आए है एवं यहाँ आकर आत्मिक प्रगति सिद्ध कर सकते हैं । इसके अतिरिक्त मोक्ष में गए हुए सिद्ध परमात्मा हमारे लिए पुष्ट दृढ आलंबनरूप है। उनके आलंबन से याने उनको लक्ष्य बनाकर हम भी अपना शुद्ध स्वरूप पाने के लिए प्रबल पुरुषार्थ कर सकते हैं। उनका स्मरण या ध्यान करके हम भी कर्मसमूह को भेदकर उनके जैसे बन सकते हैं । यही उनका हमारे ऊपर सबसे बड़ा उपकार हैं । तदुपरांत सर्व साधकों का लक्ष्य सिद्ध अवस्था है । सिद्ध भगवंत सर्व साधकों के लिए परम आदर्शरूप हैं । उनको लक्ष्य बनाकर साधना करनेवाले साधक अवश्य सिद्ध अवस्था प्राप्त करते हैं । सिद्ध भगवंतों का यह सर्वश्रेष्ठ उपकार है । इसीलिए प.पू. देवचन्द्रजी महाराज ने कहा है - "सकल सिद्धता ताहरी रे, मारे साधन रूप" । - संभवनाथजी स्तवन सिद्रों का स्थान : सिद्ध के जीव आठ कर्मों के भार से हलके होने के बाद लोक के अग्रभाग में स्थिर होते हैं क्योंकि जीव का स्वभाव ही ऊर्ध्वगमन का है, तो भी जब तक जीव कर्म के भार से दबा हुआ है, तब तक वह कर्मानुसार ही प्रवृत्ति करता है । जब कि सिद्ध भगवंत कर्म से संपूर्णतया मुक्त हैं । अग्नि, तुंबडा वगैरह के दृष्टांत से जीव कर्मरहित होने के साथ ही ऊर्ध्वगति करता है । कर्मरहित जीव का ऊर्ध्वगमन का स्वभाव होने से वे ऊपर लोक के अग्रभाव में स्थिर होते हैं । वहाँ से आगे अलोक आता है एवं अलोक में गति-सहायक धर्मास्तिकाय, स्थिति-सहायक अधर्मास्तिकाय न होने के कारण अलोक में सिद्ध की आत्मा गति नहीं कर सकती या स्थिर भी नहीं रह सकती । इसलिए चौदह राजलोक के अंत पर अग्रभाग में शुद्ध, निर्मल स्फटिक की ४५ लाख योजन
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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