SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र संवेदना जगत् पर जैसा उपकार किया है, वैसा उपकार अन्य किसी ने नहीं किया है। जीवों में जो भी अच्छाई देखने को मिलती है, वह सब अरिहंत के प्रभाव से है । यदि अरिहंत न होते, जीवों के ऊपर उन्होंने अपनी करुणा न बरसाई होती, जगत् के जीवों को उन्होंने हित का मार्ग न बताया होता, शासन की स्थापना करके इस जगत् में शासन की प्रभावना न की होती, तो दया-नम्रता-संतोषसरलता-करुणा वगैरह गुण जो भी जगत् में देखने को मिलते हैं, वे देखने को नहीं मिलते एवं ये गुण न होते, तो गुणों के कारण बंधे हुए पुण्य, पुण्य से प्राप्त होनेवाले भौतिक सुख या सद्गति की प्राप्ति भी नहीं होती । सागर मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता, सूर्य-चन्द्र समय से उगते हैं, ऋतुएँ अनुकूल रहती हैं, वायु अनुकूल बहती है, पाँचों भूत योग्य रीति से काम करते हैं; यह सब प्रभाव धर्म का है एवं इस जगत् में धर्म है, वह प्रभाव श्री अरिहंत का है । अरिहंत न होते एवं उनका प्ररूपित मार्ग न होता, तो मोक्ष की आराधना नहीं होती और उसके बिना मोक्ष भी नहीं होता, मोक्ष नहीं होता तो सिद्ध भी नहीं होते... अरिहंत न होते, तो नवपद भी नहीं होते । देवतत्त्व, गुरुतत्त्व या धर्मतत्त्व भी नहीं होते, साधक भी नहीं होते एवं साधना भी नहीं होती... __इस तरह, इस जगत् पर सब से बड़ा उपकार श्री अरिहंत का है । आज तक हुई अनंत माताओं ने हमारे ऊपर जो प्रेम बरसाया है, वह प्रेम मर्यादित एवं स्वार्थपूर्ण था, जब कि श्री अरिहंतरूप इस माता ने अपने ऊपर जो प्रेम बरसाया है, वह अमर्यादित एवं निःस्वार्थ भाव का है । 'अरिहंत' शब्द के अलग-अलग अर्थ: १. अरिहंताणं अरि' अर्थात् शत्रु और 'हंत' अर्थात् नाश करनेवाला इस तरह जो क्रोध, मान, माया, लोभ, राग और द्वेष स्वरूप अंतरंग शत्रुओं का नाश करते हैं, वे अरिहंत कहलाते हैं ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy