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________________ सूत्र संवेदना समवसरणभूमि में एक योजन तक एवं प्रभु के घुटने तक ऊँची फैली होती है। सैकडों लोगों के गमनागमन के बावजूद भी इन पुष्पों को भगवंत के प्रभाव से लेश मात्र भी पीड़ा नहीं होती । देवता इस पुष्पवर्षा के साथ-साथ उसकी अत्यंत शोभायमान ऐसी व्यवस्थित रचना भी करते हैं, जैसे मानों स्वस्तिक, श्रीवत्स वगैरह प्रशस्त आकृतियों का पुष्पों से निर्मित गलीचा ही हो। ७. दिव्यध्वनि : मालकोष आदि ग्राम रागों से पवित्रित श्री अरिहंत की ध्वनि, देवताओं द्वारा की गई ध्वनि से मिश्रित होकर एक योजन तक फैलती है । जिस प्रकार back-ground music से किसी गायिका की गीत ध्वनि अधिक मधुर हो जाती है, वैसे ही स्वाभाविक रूप से अमृत का सिंचन करनेवाली प्रभु की वाणी देवताओं के वाजिंत्रनाद से अत्यधिक आह्लादक बनती है । ८. चामर (चामर श्रेणी) : जब श्री अरिहंत परमात्मा चलते हैं, तब ऊपर आकाश में चामर झूलते रहते हैं एवं जब वे समवसरण में बिराजमान होते हैं, तब उनकी चारों आकृतिओं के दोनों तरफ देवता चामर झूलाते हैं । ९. सिंहासन : समवसरण में पाद पीठ से युक्त रत्नजडित सोने के सिंहासन पर श्री अरिहंत परमात्मा बिराजमान होते हैं । जब श्री अरिहंत परमात्मा विहार करते हैं, तब यह सिंहासन भगवंत के आगे के भाग में ऊपर आकाश में चलता है । अशोक वृक्ष के नीचे चार दिशाओं में चार सिंहासन होते हैं । हर एक के उपर मोतियों की मालाओं से सुशोभित तीन छत्र होते हैं एवं आगे धर्मचक्र होता है । १०. भामंडल । भगवंत के मस्तक के पीछे अत्यंत मनोहर एवं सूर्यमंडल की शोभा से भी अधिक शोभावाला भामंडल होता है । घाति कर्मों का नाश होने के बाद अरिहंत परमात्मा के मस्तक के बहुत ही नजदीक पीछे के भाग में तेजोमंडल (प्रभाओं का वर्तुल) उत्पन्न होता है । भगवंत का रूप अतितेजस्वी होता है । यह भामंडल भगवान् के अतितेजस्वी रूप को अपने में संक्रमित
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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