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श्री नमस्कार महामंत्र
परन्तु केवली भगवंतों का ज्ञान संपूर्ण होते हुए भी अतिशयित नहीं होता । अनुत्तरवासी देवताओं के तत्त्वज्ञान संबंधी संशय तथा अन्य जीवों के सर्व संशय भगवान ज्ञानातिशय द्वारा दूर करते हैं । संशय निवारण करने का ऐसा सामर्थ्य सामान्य केवली भगवंत में नहीं होता।
३. वचनातिशय : सर्व जीवों को अभयदान देने में समर्थ एवं सर्व भाषाओं में परिवर्तित होनेवाली श्री अरिहंत परमात्मा की वाणी ३५ गुणों16 से युक्त होती है । देवता, मनुष्य एवं तिर्यंच सभी अपनी-अपनी भाषा में इस वाणी को समझकर प्रतिबोध पाते हैं । प्रभु की वाणी में ऐसी क्षमता होती है कि जीवों की जितनी योग्यता हो, उतनी योग्यता वाणी द्वारा प्रगट होती है। वाणी की ऐसी शक्ति जगत् में अन्य किसी की नहीं होती । यह प्रभु का वचनातिशय है ।
४. पूजातिशय : सभी देवता, असुर एवं मनुष्य सतत भगवान की उत्कृष्ट पूजा करते हैं । सर्वश्रेष्ठ ऐश्वर्य के धारक ६४ इन्द्र उनके पाँचों कल्याणकों के समय अत्यंत भावपूर्वक जैसी भक्ति करते हैं, वैसी भक्ति/ पूजा जगत् में अन्य किसी को भी प्राप्त नहीं होती, यह पूजातिशय है । अष्ट महापातिहार्य :
५. अशोक वृक्ष : जहाँ-जहाँ श्री अरिहंत परमात्मा खड़े रहते हैं, बैठते हैं, तथा चलते हैं वहाँ-वहाँ यक्ष देवता; पत्तों से परिपूर्ण, सर्व ऋतुओं के एक साथ खिले हुए पुष्पादि से युक्त तथा ध्वजाएँ, घंटाएँ एवं पताकाओं से सुशोभित अशोक वृक्ष की रचना करते हैं । उसकी ऊँचाई भगवंत की ऊँचाई से बारह गुणी ऊँची होती है, उसका विस्तार एक योजन होता है । श्री अरिहंत के मस्तक पर शोभित तीन छत्र इस वृक्ष से झूलते हैं।
६. सुरपुष्पवृष्टि : श्री अरिहंत परमात्मा की देशनाभूमि में देवता पाँच वर्ण के विकसित मुखवाले पुष्पों की निरंतर वर्षा करते हैं । यह पुष्पवर्षा 16.वाणी के ३५ गुणों के लिए गुजराती सूत्र संवेदना-१ में परिशिष्ट - २ देखें