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सूत्र संवेदना
अरिहंत के बारह गुण :
चौदह पूर्व के साररूप श्री नमस्कार महामंत्र का रहस्य उसके प्रथम पद 'नमो अरिहंताणं' में है । नमो अरिहंताणं का रहस्य अरिहंत पद है एवं अरिहंत पद का रहस्य बारह गुण हैं । इन बारह गुणों के आलंबन बिना श्री अरिहंत परमात्मा को बुद्धि से समझना सम्भव नहीं है । बारह गुणों के आलंबन के बिना श्री अरिहंत परमात्मा का ध्यान तो, निर्ग्रन्थभाव रहित व्यक्ति का मात्र साधुवेश देखकर उसे साधु मानकर उसकी उपासना करने के बराबर है । बारह गुण एवं अरिहंत का अविनाभावी संबंध है । केवलज्ञान की उत्पत्ति होने के साथ ही तीर्थंकर के बारह गुण प्रकट होते हैं । वे ही भगवान के लक्षण हैं अर्थात् भगवान की पहचान हैं । जब तीर्थंकर परमात्मा विद्यमान होते हैं, तब समकिती जीव को इन बारह गुणों के माध्यम से श्री तीर्थंकर की पहचान होती है एवं जो भव्य जीव मिथ्यादृष्टि होते हैं, उनको ये बारह गुण एक चमत्कार लगते हैं, जिससे प्रभावित होकर वे परमात्मा की ओर आकर्षित होते हैं एवं धीरे धीरे वे भी धर्म करने लगते हैं । ये महाप्रभावशाली गुण, दर्शन मात्र से अनेक जीवों के हृदय की व्याकुलता
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मिटा देते हैं । इसका श्रेष्ठ उदाहरण श्री गौतमस्वामीजी है ।
अरिहंतों के यथाभूत, वास्तविक एवं दूसरों में न हों, ऐसे १२ गुणों में निम्नोक्त ४ अतिशय एवं ८ प्रातिहार्यों का समावेश होता है ।
चार अतिशय :
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१. अपायापगम अतिशय : श्री अरिहंत जहाँ विद्यमान होते हैं, वहाँ उनकी चारों दिशाओं में पचीस पचीस योजन, इस प्रकार १०० योजन तथा ऊर्ध्व एवं अधो दिशा में १२ / १२ /, योजन इस तरह १२५ योजन तक लोक में दुर्भिक्ष • (दुष्काल) वगैरह सर्व प्रकार के कष्ट शांत हो जाते हैं । यह पूज्यों का अपग्र्यापगमातिशय है । ऐसे कष्टों को दूर करने की शक्ति जगत् में अन्य किसी की नहीं होती ।
२. ज्ञानातिशय : श्री अरिहंत परमात्मा केवलज्ञान से लोक - अलोक के संपूर्ण भावों को देखते हैं । यद्यपि ऐसा ज्ञान केवली भगवंतों में भी होता है,