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श्री नमस्कार महामंत्र
ग्यारह13 अतिशय कर्मक्षय से होते हैं तथा उन्नीस अतिशय देवकृत14 होते हैं याने देवता द्वारा निर्मित होते हैं । इन चौंतीस अतिशयों का संक्षेप कर शास्त्रों में अरिहंत के बारह गुणों का वर्णन किया हैं ।15
13.कर्मक्षय से होनेवाले ११ अतिशय : (१) एक योजन के समवसरण में कोटा कोटि देव, मनुष्य, तिर्यंचों का समावेश हो सकता है । (२) एक योजन तक सुनाई दे, एवं सर्व प्राणी अपनी भाषा में समझ सकें ऐसी पैंतीस गुणों से युक्त उनकी वाणी होती है (३) केवलज्ञान प्रगट होने के बाद प्रभु के अद्भुत रूप का तेजपुंज भामंडल के रूप में उनके पीछे स्थित हो जाता है । इस भामंडल में यदि प्रभु का तेज संक्रमित न हो, तो प्रभु के सन्मुख कोई दृष्टि भी नहीं कर सकता
और प्रभु विहरते हों तब उनके आसपास सवा सौ योजन तक (४) रोग का नाश होता है (५) वैर का नाश होता है (६) इति अर्थात् उपद्रवों का नाश - बीमारीयों का नाश होता है (७) मारी-मरकी नहीं होती (८) अतिवृष्टि नहीं होती (९) अनावृष्टि नहीं होती (१०) दुर्भिक्ष
भी नहीं होता तथा (११) लोगों को स्व-पर राज्य का भय नहीं रहता । 14.देवकृत १९ अतिशय : (१) धर्म चक्र : प्रभु चलते हैं तब धर्म चक्र आगे चलता है एवं प्रभु
स्थिर होते हैं तो वह भी स्थिर हो जाता है (२) चामर : दोनों तरफ देव चामर झुलाते हैं (३) मृगेन्द्रासन : स्फटिकमय सिंहासन : यह सिंहासन जब प्रभु चलते हैं तब उपर चलता है एवं बैठते है तो नीचे व्यवस्थित हो जाता हैं (४) छत्रत्रय : रत्न एवं मणि के तीन छत्र मस्तक पर रहते हैं (५) रत्नमय ध्वज : प्रभु के उपर रत्नमय ध्वज होता है (६) सुवर्ण कमल : जब प्रभु चलते हैं तब मक्खन से भी अधिक कोमल सुवर्ण के नौ कमल अपने आप पैरों के नीचे व्यवस्थित हो जाते हैं (७) वप्रत्रय : कांगरा (उमडी हुई बनावटवाली पंक्ति) सहित चांदी, सुवर्ण एवं रत्न के तीन गढ समवसरण में होते हैं (८) चतुर्मुख : देशना के समय जीव चारों तरफ से भगवंत के मुख का दर्शन कर सकते हैं, एक मूल रूप एवं तीन प्रतिबिंब होते हैं (९) अशोकवृक्ष : समवसरण में भगवान की ऊँचाई से बारह गुणा ऊँचा अशोकवृक्ष होता है जो द्रव्य एवं भाव से लोगों के शोक को दूर करता है (१०) भगवान की विहार भूमि में काँटें भी उल्टे हो जाते हैं (११) वृक्ष अत्यंत झुक जाते हैं (१२) दुंदुभि : आकाश में दुंदुभि का नाद सतत चालू ही रहता है (१३) अनुकूल वायुः वायु शरीर को सुख दे ऐसी अनुकूल होती है (१४) पक्षी प्रभु की प्रदक्षिणा देते हैं (१५) सुगंधित पानी की बारिश होती है (१६) पाँच वर्ण के सचित्त पुष्पों की वृष्टि होती है (१७) छ ऋतुएँ इन्द्रियों के विषय में अनुकूल रहती हैं (१८) दीक्षा लेने के बाद भगवान के दाढ़ी, मूंछ, नाखून बढ़ते नहीं (१९) जघन्य से एक करोड देव प्रभु
की सेवा में रहते हैं । 15.'षट्खंडागम' नाम के ग्रंथ के आधार से अरिहंत का स्वरूप जानने के लिए सूत्र संवेदना-१
गुजराती में परिशिष्ट-१ एवं ४ देखिए।