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श्री नमस्कार महामंत्र
विधि के अनुसार शास्त्रयोग का नमस्कार करने की भी मेरी क्षमता नहीं है, इसलिए आज मैं मात्र इच्छायोग से नमस्कार करता हूँ, एवं मेरा यह नमस्कार शास्त्र या सामर्थ्य योग का बने, ऐसी अभिलाषा रखता हूँ ।”
अथवा “हे नाथ ! भाव नमस्कार करने का मेरा सामर्थ्य नहीं होते हुए भी इस द्रव्य नमस्कार द्वारा भाव नमस्कार तक पहुँच सकूँ, ऐसी प्रार्थना करता हूँ।"
गुणों के बोध बिना या गुणों के प्रति बहुमान के बिना नमन की क्रिया द्रव्य नमस्कार है या किसी भौतिक आकांक्षा से किया हुआ नमस्कार भी द्रव्य नमस्कार है, जबकि नमस्करणीय में रहे हुए गुणों के पूर्णबोधपूर्वक, यही गुण मेरे लिए प्राप्त करने योग्य हैं, यही सारभूत हैं, इस प्रकार के परिणाम से उन गुणों की निष्पत्ति के अनुकूल आत्मवीर्य का प्रवर्तन, भावनमस्कार है । यह भाव नमस्कार मात्र उपयोगवंत सम्यग्दृष्टि11 जीव ही कर सकता है । इसके अलावा जीव चाहे बाह्य विधि कितनी भी शुद्ध करे, तो भी उसका नमस्कार, द्रव्य नमस्कार ही रहता है । भाव नमस्कार का उपाय :
भाव से नमस्कार करने के लिए पहली आवश्यकता है - नमस्करणीय ३. सामर्थ्ययोग : मोक्ष का मार्ग अतीन्द्रिय है । अतीन्द्रिय ऐसे इस मार्ग का ज्ञान, शास्त्र से भी मर्यादित प्राप्त होता है । आत्मशक्ति का जब उद्रेक होता है अर्थात् आत्मा की तीव्र शक्ति जब प्रगट होती है, तब अनुभव ज्ञान होता है । इस ज्ञान से शास्त्र में बताए हुए मार्ग से आगे बढ़ने का मार्ग दिखता है । उस मार्ग पर शक्ति प्रवर्तन करने से घाती कर्मों का नाश करके आत्मा केवलज्ञान को प्राप्त करता है । वीर्य प्रवर्तन की इस क्रिया को सामर्थ्य योग कहते हैं । तरतमता
के भेद से शास्त्रकारों ने इस प्रकार से धर्म क्रिया के तीन प्रकार बताएँ हैं। 10.तथा भाव नमस्कारमाह - तत्ततियं - तत्वत्रिकं देव गुरु धर्म-विषयम्, भावनमस्कारः सम्यक्त्वम् ।
देव-गुरु-धर्म इन तीन तत्त्वों को यथार्थ रूप से जानकर सम्यग्दर्शन गुण की स्पर्शनापूर्वक जो नमस्कार किया जाता है वह भाव नमस्कार है । सम्यक्त्व के बिना भाव नमस्कार नहीं होता ।
- नमस्कार स्वाध्याय 11. निहाइ दव्व-भावोवउत्त जं कुज्ज सम्मदिट्ठी १ x x x ||८९।।
- श्री आवश्यक नियुक्ति