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श्री नमस्कार महामंत्र
पूर्वानुपूर्वी से और पश्चानुपूर्वी से अथवा अनानुपूर्वी से अंतर्मुहूर्त जितने अल्पकाल में चौदह पूर्व के ज्ञान का पुनरावर्तन कर सकते हैं, वे भी अंतिम समय में चौदह पूर्व का स्मरण न करते हुए, चौदह पूर्व के सारभूत नवकार का ही स्मरण करते हैं।
नवकार में अनंत लब्धियाँ हैं : विशिष्ट चारित्र के पालन से प्राप्त होनेवाली लब्धियाँ गणधर भगवंत, आचार्य भगवंत एवं मुनियों में होती हैं एवं उनका समावेश नवकार में होता है । इसलिए नवकार का स्मरण करने से लब्धि के अर्थी को अनेक प्रकार की लब्धियाँ प्राप्त होती हैं । अतः नवकार में अनंत लब्धियाँ समाई हुई हैं, ऐसा कहा जाता है ।
नवकार में चौदह रत्न, नौ निधान भी निहित हैं : बाह्य दृष्टि से चौदह रत्न और नौ निधानरूप वैभव नवकार में नहीं दिखता । यह वैभव तो चक्रवर्ती आदि में दिखाई देता है, तो भी यह चक्रवर्ती पद धर्म की विशिष्ट आराधना करने से बँधे पुण्य के योग से ही मिल सकता है । धर्म की विशिष्ट आराधना में भी नवकार की अर्थात् पंचपरमेष्ठी की आराधना का समावेश हो ही जाता है । संक्षेप में, जगत् में जो भी उत्तम वस्तु या उत्तम पदवी है, वह सब इस नवकार मंत्र से प्राप्त होती है । इसलिए ऐसा कह सकते हैं कि नवकार की आराधना से चौदह रत्न और नौ निधान प्राप्त होते हैं ।
नवकार में दर्शन-ज्ञान-चारित्र भी निहित हैं । अनंत ज्ञान-दर्शन-चारित्र के धारक अरिहंत और सिद्ध भगवान नवकार में हैं । शास्त्र में कहा गया है कि
_ 'जस्स मणे नवकारो संसारो तस्स किं कुणइ' 'जिसके मन में हो नवकार उसका क्या बिगाडेगा संसार'
- पंचनमुक्कार फल 1. पूर्वानुपूर्वी से = आगे से पीछे गिनने की रीत 2. पश्चानुपूर्वी से = पीछे से आगे गिनने की रीत 3. अनानुपूर्वी से = क्रमरहित गिनने की रीत