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________________ सूत्र संवेदना पर भी अत्यंत फलदायक होता है । जिस तरह तिल में तेल सर्वत्र रहता है, उसी तरह सभी आगमों में ये पंच परमेष्ठी व्याप्त हैं । शास्त्र की दृष्टि से ६८ अक्षरों का यह मंत्र सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । एकाग्र चित्त से श्रद्धापूर्वक जो इस मंत्र का स्मरण, उच्चारण, जाप और ध्यान करते हैं, उनके विघ्न नाश हो जाते हैं एवं कभी बाहर से विघ्न दिखाई दें, तो भी नमस्कार महामंत्र के साधक की साधना में वे बाधक नहीं बनते । वर्तमान में भी अनेक दृष्टांत इस बात के साक्षी हैं । इस महामंत्र के चूलिका सहित नव पद को पंचमंगल-महाश्रुतस्कंध कहते हैं । जीव एवं जड़ के वास्तविक स्वरूप को बताने वाले शास्त्र श्रुत कहलाते हैं । सर्व श्रुत की अर्थ से प्ररूपणा करनेवाले अरिहंत, श्रुत के मूल स्कंध समान है । इस मंत्र में उन अरिहंतादि पूज्यों को नमस्कार किया जाता है । तदुपरांत नन्दीसूत्र, अनुयोगद्वारादि सूत्रों के और सामायिक ग्रहण इत्यादि महान क्रियाओं के आरम्भ में यह महा मांगलिक मन्त्र अलग से बोला जाता है। इन्हीं सब कारणों से यह मंत्र महाश्रुतस्कंध कहा जाता है । पंच नमस्कार के प्राकृत रूप नवकार मन्त्र के नाम से यह महामन्त्र जगत् में प्रसिद्ध है । यह चौदह पूर्व का सार है । अनंत लब्धियाँ, नौ निधान, चौदह रत्न एवं ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंत गुण भी इसी मंत्र में निहित हैं। नवकार चौदह पूर्व का मार है : सार अर्थात् रहस्य, चौदह पूर्व का रहस्य अरिहंत और सिद्ध अवस्था की प्राप्ति है । अरिहंत और सिद्ध अवस्था की प्राप्ति का उपाय यह नवकार मंत्र है । सार का अर्थ श्रेष्ठ भी होता है । आत्मा की श्रेष्ठ अवस्था अरिहंतादि स्वरूप है । जैसे चौदह पूर्व पढ़कर यह श्रेष्ठ अवस्था प्राप्त की जाती है, वैसे नवकार के ध्यान से भी यही श्रेष्ठ अवस्था प्राप्त की जाती है तथा चौदह पूर्व से जो लक्ष्य सिद्ध करना है, वही लक्ष्य नवकार से प्राप्त हो सकता है । इसलिए नवकार महामंत्र को चौदह पूर्व का सार कहा जाता है । जिन्होंने चौदह पूर्व का ज्ञान प्राप्त किया है, जो
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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