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सामायिक लेने की विधि
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आए तो चार नवकार का) काउस्सग्ग करना, काउस्सग्ग पारकर (नमो अरिहंताणं कहकर) प्रगट लोगस्स सूत्र बोलना ।। सामायिक करने से पहले सर्वप्रथम हिंसादि पापों से आत्मा को शुद्ध करना जरूरी है, हिंसादि पापों की आलोचना एवं प्रतिक्रमण करने के लिए गुरु को वंदन (करते हुए) आदेश माँगना है । उसके लिए प्रथम गुरु को खमासमण सूत्र द्वारा वंदन करने के लिए खड़े होकर... इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिजाए निसीहिआए इतने पद बोलने के बाद चरवले से भूमि का तथा संडासा का (हाथ-पैर वगैरह के जोड़ स्थानों -(Joints) का) प्रमार्जन कर नीचे झुकते हुए - मस्तक, दो हाथ, दो जानु - इन पाँचों अंगों को इकट्ठा कर भूमि को स्पर्श करते हुए मत्थएण वंदामि बोलना चाहिए ।
गुरु को इस प्रकार वंदन करने के बाद खड़े होकर गुरु से पूछे कि - इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं पडिक्कमामि ? हे भगवन् ! स्वेच्छा से आज्ञा दीजिए । मैं ईर्यापथिकी प्रतिक्रमण करूँ ?
गुरु कहते हैं - 'पडिक्कमेह' तुम प्रतिक्रमण करो - उसके बाद गुरु को इच्छं = ‘इच्छुक हूँ' ऐसा कहकर, 'मुझे आपकी आज्ञा स्वीकार्य है' ऐसा जताया जाता है । 'इच्छं' कहने के बाद इरियावहिया सूत्र बोला जाता है ।
इस सूत्र के प्रत्येक पद के अर्थ को विचारणापूर्वक बोलने से अपने किए हुए पापों का स्मरण होता है । पापों का स्मरण होने पर पापों के प्रति पश्चात्ताप का भाव उत्पन्न होता है, जिससे आत्मा की शुद्धि होती है।
इरियावहिया सूत्र बोलने के बाद भी पापों की विशेष शुद्धि के लिए तस्स उत्तरी सूत्र बोला जाता है । उसके बाद पापकर्मों के नाश के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है । परन्तु कायोत्सर्ग में कौन से आगार रखने, किस तरीके से कायोत्सर्ग करना वगैरह याद करने के लिए अन्नत्थ सूत्र बोला जाता है ।