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सूत्र संवेदना
सर्वश्रेष्ठ कोटि की सामायिक उपर्युक्त तीनों विशेषणों से युक्त होती है एवं प्रारंभिक कक्षा की सामायिक इन तीनों भावों में यत्नवाली होती है । सामायिक की साधना करने की इच्छावाले श्रावक को सामायिक का यह स्वरूप अच्छी तरह समझकर उसमें यत्न करना चाहिए । ३. सामायिक विधि: १. स्थापनाचार्य की स्थापना करने के लिए सर्वप्रथम स्थापना-मुद्रा से
नवकार एवं पंचिंदिय सूत्र बोलना : । सामायिक का अनुष्ठान संभव हो तो सद्गुरु के सान्निध्य में करना चाहिए। सद्गुरु के सान्निध्य में सामायिक करने से उत्साह में वृद्धि होती है, भूलों से बच सकते हैं एवं किया हुआ अनुष्ठान सम्यग् होता है । यदि सद्गुरु का सान्निध्य प्राप्त न हो, तो गुरु के प्रति विनय-भाव बनाये रखने के लिए उनकी स्थापना करके सामायिक करनी चाहिए । ऐसी स्थापना करने के लिए बाजोठ (पाट) आदि उच्च आसन पर अक्ष, वराटक, धार्मिक पुस्तक या माला आदि रखकर उनमें गुरुपद की स्थापना करनी चाहिए । इसके लिए स्थापना मुद्रा से दायां हाथ उनके सन्मुख रखकर तथा बांये हाथ में मुहपत्ती मुख के पास धारण कर, प्रथम मंगल रूप नमस्कार मंत्र का पाठ बोलकर, पंचिंदिय सूत्र बोलना चाहिए । इस तरीके से विधिवत् जिसमें भावाचार्य की स्थापना की जाती है, उसे स्थापनाचार्य कहते हैं । अब जो भी आदेश या अनुज्ञा लेनी हो, वह उनसे ही लेनी चाहिए । गुरु महाराज के स्थापनाचार्य हों तो, यह विधि करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु स्थापनाचार्य इस तरीके से स्थापित होने चाहिए कि क्रिया करते समय उनके और साधक के बीच मनुष्य या तिर्यंच की आड न पड़े याने कोई बीच में से आवागमन न करें । २. एक खमासमण देकर, खडे होकर ईरियाहियं० तस्स उत्तरी०,
अनत्थ०, कहकर, चंदेसु निम्मलयरा तक एक लोगस्स का (न