________________
२५०
सूत्र संवेदना
मन-वचन-काया से वैसे तो अनेक दोष होते हैं, फिर भी यहाँ मुख्यरूप से जितने दोषों की संभावना है उनकी संख्या दी है। उनके आधार से अन्य दोषों को याद करके उनका भी मिच्छा मि दुक्कडं देना हैं ।
सामान्यतया हम यह सोचते हैं कि, सामायिक का भाव तो आत्मा का परिणाम है, तो फिर मन-वचन-काया के दोषों को याद कर उनका ‘मिच्छा मि दुक्कडं' कैसे देते हैं ? वास्तव में यह सत्य है कि समता आत्मा का परिणाम है, पर वर्तमान में वह मन-वचन-काया के सम्यग् प्रवर्तन से ही सिद्ध हो सकता है। इसलिए मन-वचन-काया के योगों को दोष के रास्ते जाते हुए रोककर, निरवद्यभाव की ओर ले जाने का यत्न करें, तो सामायिक का भाव प्राप्त हो सकता है ।।
अब उस मन-वचन-काया के दोष किस प्रकार के हैं वह देखेंगे -
मन के दश दोष:
१. अविवेक : सामायिक में मन-वचन और काया से क्या करना है एवं क्या नहीं करना ? ऐसे विवेक का अभाव अविवेक दोष है । सामायिक के दौरान मन से क्या सोचा जाए या न सोचा जाए उसका पूर्ण विवेक होना चाहिए । ममता आदि दोषों को छोड़कर समता को सिद्ध करने के लिए सामायिक करना है । इस समता की सिद्धि विवेकपूर्ण शास्त्र श्रवण से या अध्ययनादि क्रिया से हो सकती है । जो सामायिक में ऐसी क्रियाएँ नहीं करते अथवा मात्र दिखाने के लिए करते हैं, परन्तु इस क्रिया द्वारा आत्मा में सामायिक के भाव को प्रकट करने का यत्न नहीं करते, उनको इस अविवेक दोष की संभावना रहती है ।
२. अविनय : गुरु भगवंत के प्रति अथवा भावाचार्य की स्थापना जिसमें की हो वैसे स्थापनाचार्य के प्रति मानसिक विनय का परिणाम एवं उसके अनुरूप की गई क्रिया विनय है और उसका अभाव ‘अविनय दोष' है । यह अविनय दोष सामायिक के भाव को उत्पन्न करने में बड़ा विघ्न बनता