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सूत्र संवेदना
जो जिनवचन सुनता है, वह श्रावक है 1 अथवा साधु के सान्निध्य में जो साधु की समाचारी = साधुजीवन के आचारों का श्रवण करता है, वह श्रावक है। श्रावक भी साधु बनने की तीव्र आकांक्षावाला होता है, इसीलिए उसे साधु की समाचारी सुनने की इच्छा होती है । श्रावक की एक व्युपत्ति यह भी हैं कि, जो श्र = श्रद्धा, व = विवेक, क = क्रिया, इन तीनों से युक्त होता है वह श्रावक । श्रावक शायद साधुता न ग्रहण कर सके तो भी साधुता शीघ्र से शीघ्र प्राप्त हो, इसके लिए उद्यमशील जरूर होता है।
वचन
ऐसा श्रावक जब सामायिक करता है, तब वह साधु तो नहीं, परन्तु साधु जीवन की अत्यंत निकट की कक्षावाला तो होता ही है... साधु जीवन संपूर्ण पाप रहित निष्पाप जीवन है । श्रावक भी समझता है कि निरवद्य भाव ही कर्मनाश का कारण है । इसीलिए सामायिक करते हुए मन, एवं काया से पाप नहीं करूँगा, नहीं करवाऊँगा, ऐसी प्रतिज्ञा करता है एवं उस प्रतिज्ञा के भाव में रहने के लिए यत्न भी करता है । इस निरवद्य प्रवृत्ति के लिए किए गये प्रयत्न से ही श्रावक साधु समान माना जाता है एवं इसी कारण उसके अशुभ कर्मों का भी नाश होता है ।
एएण कारणं बहुसो सामाइयं कुज्जा : इस कारण से = जितनी बार सामायिक करें उतनी बार अशुभ कर्मों का नाश होता ही है, इसलिए बहुत बार सामायिक करनी चाहिए ।
सामायिक के समय श्रावक साधु जैसा होता है, इसलिए वह जितनी बार सामायिक करता है, उतनी बार अशुभ कर्मों का नाश करता है । इसीलिए मोक्षार्थी श्रावक को अनेक बार सामायिक करनी चाहिए ।
आत्महित के लिए बार बार सामायिक करने की भावनावाला श्रावक सामायिक पारे, तो भी उसका मन सामायिक के प्रति ही बंधा रहता हैं।
1. श्रावक का अर्थ है ' शृणोति जिनवचनम् इति श्रावक' 'शृणोति साधुसमीपे साधु सामाचारीमिति
श्रावकः