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सामाइयवय जुत्तो सूत्र . २४५ करते हैं, उतनी बार अशुभ कर्मों का नाश होता है । इसीलिए अशुभ कर्मों का नाश चाहनेवाली आत्मा को बार-बार सामायिक करनी चाहिए । _ 'करेमि भंते' सूत्र में जिसका स्वरूप बताया है, वैसी सामायिक उल्लास में आकर अक्सर ली जाती है, परन्तु हमेशा भावपूर्वक सामायिक के उपयोग में रहना बहुत मुश्किल है । इस सूत्र में सामायिक के जो लाभ बताये हैं, वे भावपूर्वक सामायिक व्रत में लीन रहनेवाले श्रावक के लिए ही हैं, दूसरों के लिए नहीं । इस गाथा का उच्चारण करते हुए सोचना चाहिए, 'प्रभु ने कर्मनाश का कितना अद्भुत उपाय बताया है। न उसमें धन का व्यय होता है - न शरीर को श्रम पडता है फिर भी उससे कर्मनाश होता ही रहता है । ऐसा अनुष्ठान बतानेवाले प्रभु की करुणा अपरंपार है । जब जब समय मिले, तब-तब अगर भाव से इस व्रत का स्वीकार करूँ तो कितनी कर्मनिर्जरा कर पाऊँ... पर मैं कितना अभागा हूँ । समय होने पर भी मैं इस व्रत को स्वीकार करने में प्रमाद करता हूँ अगर स्वीकार कर तो उसका मात्र व्यवहार से पालन करता हूँ; पर समता को पाने के लिए यत्न नहीं करता । हे नाथ ! मेरा क्या होगा ? अशुभ कर्म का उदय जब आएँगा तब मैं क्या करूँगा ? इससे बचने के लिए मैं आज से ही शुद्ध सामायिक करने का यत्न करूँ ।' अब सामायिक की क्रिया द्वारा अशुभ कर्मों का नाश होता है, ऐसा बताते हुए कहते हैं, सामाइयम्मि उ कए समणो इव सावओ हवइ जम्हा : जिस कारण से सामायिक करता हुआ श्रावक साधु जैसा ही हो जाता है उसी कारण से सामायिक में श्रावक के अशुभ कर्मों का नाश होता है ।