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सूत्र संवेदना जीवन की शिक्षा मिलने से उसे शिक्षाव्रत भी कहते हैं । श्रावक के १२ व्रतों में सामायिक व्रत का समावेश नौवें व्रत में पहले शिक्षाव्रत के रूप में किया गया है । इसीलिए सामायिक को व्रतरूप मानकर सूत्र की शुरूआत में कहा गया कि सामायिक के व्रत से युक्त श्रावक है और दूसरी पंक्ति में उसे नियम के तरीके से बताया गया है । छिन्नइ असुहं कम्मं : अशुभ कर्म का नाश होता है । जिसका मन सामायिक के भाव से युक्त होता है उसके ही अशुभ कर्मों याने दुःख-दौर्भाग्य देनेवाले पाप कर्मों का छेदन होता है । परमार्थ से सोचें, तो शुभ या अशुभ सब कर्म आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्रकट करने में अंतरायभूत होने के कारण अशुभ ही हैं, तो भी व्यवहार से पाप-आस्रव को ही अशुभ कर्म कहा जाता है, क्योंकि उसका फल बहुत बुरा होता है और उसका उदय होने पर सत्संग के साधनों की प्राप्ति शीघ्र नहीं होती । ऐसे अशुभ कर्म सामायिक में उत्पन्न होनेवाली भावशुद्धि द्वारा नाश होते हैं क्योंकि भावशुद्धि एक प्रकार का अभ्यंतर तप है, जो निर्जरारूप है ।
जिज्ञासा : यहाँ कर्म का छेद होता है, ऐसा न कहते हुए ऐसा क्यों कहा है कि, अशुभ कर्मों का छेद होता है ? __ तृप्ति : प्राथमिक भूमिकावाले बाल जीवों को जब धर्म में जोड़ना हो तब उन्हें “अगर तुम ये धर्म क्रिया करोंगे, तो तुम्हारे पाप-अशुभ कर्मों का नाश होगा" ऐसा कहने से वे क्रिया में शीघ्र जुड़ते हैं क्योंकि सबको दुःख देनेवाले पापरूपी अशुभ कर्मों को नाश करने की इच्छा तो होती ही है । सामाइय जत्तियावारा : एक बार ग्रहण की हुई सामायिक से ही अशुभ कर्मों का नाश होता है, ऐसा नहीं है, परंतु जितनी बार सामायिक करते है उतनी बार अशुभ कर्मों का नाश होता है । अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण करते हुए जीव ने इतने कर्म बांधे हैं कि, वे एकबार की सामायिक से नष्ट हो जाए ऐसा नहीं है । इसीलिए कहा गया कि आप जितनी बार सामायिक