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सामाइयवय जुत्तो सूत्र
अन्वय एवं संस्कृत छाया सहित शब्दार्थ : सामाइय-वयजुत्तो, जाव मणे होइ नियम- संजुत्तो, सामायिक-व्रतयुक्तः यावत् मनसि नियमसंयुक्तः भवति सामायिक व्रत से युक्त (श्रावक का) मन जब तक नियम से जुड़ा है (तब तक वह)
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जत्तिया वारा सामाइय छिन्नइ असुहं कम्मं ॥ १ ॥
यावत् वारान् सामायिकं (करोति. तावत्, तावत् वारान्) अशुभं कर्म छिन्नत्ति । जितनी बार सामायिक (करता है, उतनी बार और उतने समय तक) अशुभ कर्मों को छेदता है ।
( यहाँ प्रश्न होता है कि, किस कारण वह अशुभ कर्मों को छेदता है ? उसका जवाब देते हुए कहते हैं कि...)
जम्हा,
यस्मात्
जिस कारण से
सामाइयमिक, उसमणो इव सावओ हवइ सामायिके कृते तु श्रावकः श्रमणो इव भवति ।
सामायिक करते समय श्रावक साधु जैसा होता है, (इस कारण अशुभ कर्म को छेदता है ।)
एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा ।।२।।
एतेन कारणेन बहुशः सामायिकं कुर्यात् ।
(सामायिक अशुभ कर्म को छेदता है) इसलिए सामायिक बहुत बार करनी चाहिए ।
सामायिक विधिए लीधुं, विधिए पार्यु, विधि करतां जे कोई अविधि हुओ होय, ते सविहु मन, वचन, कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं.
सामायिक विधि से लिया, विधि से पारा फिर भी अगर विधि करते हुए कोई अविधि हो गई हो तो उसका 'मिच्छामि दुक्कडं' ।
दश मनना, दश वचनना, बार कायाना बत्रीस दोषोमांथी जे कोई दोष लाग्यो होय, ते सविहु मन, वचन, कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं ।