SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करेमि भंते सूत्र २२९ त्याग तो सर्वसंवर भाव के सामायिक में १४वें गुणस्थानक के शैलेशीकरण में ही होता है। 'पच्चक्खामि' शब्द का अर्थ होता है 'निषेधपूर्वक अभिव्यक्त करता हूँ' अर्थात् अनुचित प्रवृत्ति का त्याग एवं स्वाध्याय, ध्यान आदि उचित प्रवृत्ति करने का निर्णय करता हूँ । जैनशासन का कोई भी पच्चक्खाण अंदरूनी तौर से अनुचित प्रवृत्ति का निषेध एवं उचित प्रवृत्ति का कथन करनेवाला ही होता है। सामायिक की प्रतिज्ञा भी उचित प्रवृत्ति प्रधान है। सामायिक की प्रवृत्ति भी औचित्यपूर्ण प्रवृत्ति के पालन एवं अनुचित सावद्य प्रवृत्ति के निषेध से ही नभती है । 'हे भगवंत ! में सामायिक करता हूँ एवं सावद्य योगों का पच्चक्खाण (त्याग) करता हूँ । ऐसी प्रतिज्ञा श्रुतज्ञान के एक उपयोगरूप है - श्रुत की परतंत्रता को स्वीकार करने रूप है । इसलिए जिसके मन-वचन-काया सतत शास्त्र से नियंत्रित रहते हों, वही साधक मन-वचन-काया के सावध योग का पच्चक्खाण कर सकता है । बोलते-चलते, खाते-पीते, सोचने या सोने की क्रिया करते हुए शास्त्र इस विषय में क्या कहते हैं ? इस विषय में भगवान की आज्ञा क्या है ? उसका उपयोग रखकर शास्त्र वचन को स्मरण में लाकर जो साधक अपने मन-वचन-काया को सक्रिय करे, वही सावध योग से रुक सकता है । जो व्यक्ति अपनी इच्छानुसार मन-वचन-काया का उपयोग करता है, वह कभी भी सावध योग से रुक नहीं सकता । इसीलिए अंशतः या सम्पूर्णः सामायिक की प्रतिज्ञा लेनेवाले साधक को सामायिक के दौरान मन-वचन-काया की प्रवृत्ति किस तरीके से करनी चाहिए, इस विषय 7. पच्चक्खामि - प्रत्याख्यामि - पच्चक्खाण करता हूँ । यह शब्द प्रति+आ+ख्या धातु का प्रथम पुरुष एक वचन का रूप है । 'प्रति' प्रतिषेध, निषेध अर्थ में है अर्थात् प्रति शब्द दूर करने के अर्थ में प्रयोग हुआ है एवं 'आख्यान' शब्द अभिमुखता से ख्यापन करने के अर्थ में प्रयोग हुआ है। 8. समभावो सामाइयं तणकंचणसत्तुमित्तविसउ ति । णिरभिस्संगं चित्तं उचियपवित्तिप्पहाणं च।। - पंचाशक
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy