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उलांघ कर, सबको कोई अनोखी एवं अद्भुत समझ प्राप्त होने की अनुभूति होने लगी।
अति अल्पमति से भी जब हम सूत्रार्थ का श्रवण करते तब अरिहंत का स्वरूप, उनके गुण, उनके योग का ऐश्वर्य एवं सब से अधिक तो उनकी करुणा का हूबहू चित्र हमारे मानसपट पर तैयार होता गया।
सूत्रार्थ का अभ्यास कराते-कराते उन्होंने हमें जीवन जीने कि दिशा बताई 'पंच परमेष्ठि मात्र हमारे उपकारी हैं इतना ही नहीं; परन्तु यह अवस्था ही हमारा ध्येय है' ऐसा निर्णय कराया एवं उसके लिए पंचाचार का पालन ही सुख का मार्ग है ऐसी प्रतीति होने लगी। अरिहंतादि का वर्णन सुनते ही रागद्वेषादि अंतरगशत्रु की पहचान हुई। शत्रुओं की शत्रुता कैसी है ये समझ में आया। आत्मा, पुण्य, पाप एवं परलोक के प्रति आस्था बढ़ती गई। आत्मभाव पाने के लिए एवं परलोक सुधारने के लिए क्या करना चाहिए, उसका उपाय मानसपट पर थोड़ा-थोड़ा उपस्थित होने लगा। __ आर्यदेश के संस्कारी कुटुंब में गृहिणी का जीवन गुजारते या कर्माधीन बन कर व्यापार करते हुए जो विचारशक्ति नहीं खिली थी, वैसी विचारकता इस सूत्रार्थ पढ़ते हुए खिलने लगी। अनादि-अनंतकाल तक भटकते हमारी क्या हालत होगी ये जानकर जो बेचैनी होने लगी उसके सामने अपनी रोज-रोज की आर्थिक, सामाजिक या पारिवारिक परेशानी की कोई कीमत नहीं लगी। साध्वीजी भगवंत से गणधर भगवंत की वाणी सुनते हुए वास्तविकता का भान होने पर ऐसी चिंता होने लगी कि अपना क्या होगा ? तब करुणापरायण गुरुदेव ने कहा, 'भले आप विशिष्ट तपजप न कर सकें, यदि बोध एवं श्रद्धापूर्वक मात्र आवश्यक क्रिया करोगे तो भी आप मार्ग पर जल्दी से आगे बढ़ सकोगे ।' ___ मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए ही पू.साध्वीजी भगवंत ने हमें अर्थ करवाया था। आपश्री ने सूत्रार्थ का ज्ञान मात्र शब्द से ही नहीं करवाया, अर्थ का ज्ञान मात्र जानकारी के लिए ही नहीं दिया, परन्तु आवश्यक क्रिया