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करेमि भंते सूत्र
मोक्षाभिलाषी समझता है कि, सब पापों से निवृत्तिरूप सामायिक राग-द्वेष के अभावस्वरूप समभाव के बिना प्राप्त नहीं होती एवं उसके बिना कभी मोक्ष नहीं मिलता। मोक्ष की अत्यंत इच्छा होते हुए भी जिसमें यह सामर्थ्य नहीं कि, वह सब पाप प्रवृत्ति का त्याग कर सर्वविरति स्वीकार सके, वैसे असमर्थ श्रावक इस सूत्र द्वारा सर्वविरति के अभ्यास के लिए 'जाव नियमं पज्जुवासामि' पाठ बोलकर दो घड़ी तक मन-वचन-काया से पाप नहीं करूँगा एवं नहीं करवाऊँगा, ऐसी प्रतिज्ञा ग्रहण करते हैं । जब कि सर्वविरति स्वीकारनेवाले साधक तो इस सूत्र द्वारा 'जावज्जीवाओ' ऐसा पाठ बोलकर 'जब तक जीवन है तब तक मन-वचन-काया से पाप नहीं करूँगा' नहीं करवाऊँगा एवं करनेवाले का अनुमोदन नहीं करूँगा' ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं एवं विशिष्ट समभाव प्रकट करने का यत्न करता है ।
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सर्वविरति सामायिक की यह प्रतिज्ञा एक भीष्म प्रतिज्ञा है । अनादिकाल से पापों से जुडी हुई आत्मा के लिए यह प्रतिज्ञा मोम के दांतों से लोहे के चने चबाने जैसी, मेरु पर्वत के भार को वहन करने जैसी एवं राधावेध साधने जैसी है। इसीलिए मुनि भगवंत व्रत के परिणामों की दृढ़ता के लिए एवं पुनः पुनः अपनी प्रतिज्ञा को याद करने के लिए एक दिन में नौ नौ बार यह सूत्र बोलते हैं । जैसे करोड़ों के ज़ेवर लेकर बाजार में जाते हुए जौहरी का ध्यान सतत अपने हीरों में होता है, वैसे ऐसी कठोर प्रतिज्ञा स्वीकारने के बाद मुनि भी यह सावधानी रखते हैं कि संसार के अच्छे - बुरे भाव में कोई प्रतिबंध न हो जाए ।
इस सूत्र द्वारा जो सामायिक की प्रतिज्ञा ग्रहण की जाती है, वह एक विशिष्ट कोटि की प्रतिज्ञा है । इसीलिए, इस प्रतिज्ञा का जिसे योग्य तरीके से पालन करना हो उसे इस सूत्र का अर्थ सम्यग् प्रकार से गीतार्थ नाँध : इस सूत्र द्वारा दो घड़ी पाप के विराम रूप देशविरति की तथा जब तक जीवन है तब तक
पाप के विरामरूप सर्वविरति की प्रतिज्ञा की जाती है । इन दोनों वस्तुओं को ध्यान में रखकर सामान्य से सूत्र का परिचय दिया है । परन्तु वाचकवर्ग यथायोग्य विभाग करके समझे