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लोगस्स सूत्र
दुनिया में चंद्र अति निर्मल माना जाता हैं । वैसे ती निर्मलता का कोई मापदंड नहीं होता, फिर भी कल्पना से एक चंद्र की जितनी निर्मलता हो, उससे अनेक चंद्रों की निर्मलता कई अधिक होती है। ऐसे असंख्य चंद्रों के इकट्ठा होने से जितनी निर्मलता होती हैं, परमात्मा की निर्मलता उससे भी अनंतगुणी है। चंद्र की निर्मलता शाश्वती नहीं है, जब कि परमात्मा में कर्ममल के नाश से उत्पन्न होनेवाली निर्मलता, शाश्वती होती है । पुद्गल की निर्मलता रागी आत्मा के लिए रागवृद्धि का कारण बनती है, जब कि कर्ममल के नाश से उत्पन्न हुई परमात्मा की निर्मलता किसी के कषाय का कारण नहीं बनती, बल्कि ऐसे परमात्मा के दर्शन से कषाय का नाश जरूर हो जाता है । जैसे चंद्रमा शीतलता और प्रकाश गुण के कारण निर्मल है, वैसे ही परमात्मा कषायों के नाश के कारण निर्मल और शीतल हैं ।
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आइचेसु अहियं पयासयरा : सूर्यो 24 से अधिक प्रकाश करनेवाले ।
बहुत से सूर्य इकट्ठे होकर भी परिमित क्षेत्र को ही प्रकाशित कर सकते हैं और वह भी मात्र द्रव्य प्रकाश फैलाकर मात्र बाह्य जगत का ही दर्शन करवा सकते हैं, जब कि केवलज्ञान के प्रकाश द्वारा परमात्मा जगत् के
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बाह्य - आभ्यंतर सभी भावों को जानते । जाने हुए उन भावों को जगत के जीवों को वचन द्वारा बताते हैं जगत का यथार्थ स्वरूप जानकर परमात्मा हित में प्रवृत्ति और अहित से निर्वृत्ति करने रूप सन्मार्ग को प्रकाशित करते हैं । इस प्रकार परमात्मा बाह्य और अभ्यंतर दोनों मार्गों को प्रकाशित करते हैं । द्रव्य मार्ग को प्रकाशित करने के बजाय भाव मार्ग को प्रकाशित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है इसलिए परमात्मा सूर्य से भी अधिक प्रकाश करनेवाले कहे गए हैं तथा बादल वगैरह का आवरण आने से सूर्य धुंधला हो जाता है, जब कि परमात्मा में जो केवलज्ञान का प्रकाश प्रकट हुआ है, उसे किसी प्रकार का आवरण बाधा नहीं पहुँचा सकता ।
24. यहाँ भी विभक्ति का फेरफार पूर्व की तरह समझ लें ।