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________________ २१४ सूत्र संवेदना लिए किसी की कोई भी अपेक्षा नहीं रहती एवं एक बार प्राप्त होने के बाद भाव समाधि चिरकाल तक टिकी रहती है । यहाँ 'समाहिवरमुत्तमं' शब्द प्रयोग से प्रतीत होता हैं कि मुमुक्षु को उत्तम कोटि की भावसमाधि चाहिए, ऐसी समाधि जिसका किसी भी परिस्थिति में नाश न हो । ऐसी श्रेष्ठ समाधि तब ही मिलती है, जब चित्त सर्वत्र उदासीन वृत्तिवाला बनें, मन-वचन और काया समिति और गुप्ति से युक्त बनें, श्रेष्ठ कोटि के संयम भाव में आत्मा स्थिर बनें । साधक की आशंसा है कि, ऐसी उत्तम समाधि उसे प्राप्त हो, जो जन्मांतर में भी बोधि की प्राप्ति करवाकर उसे मोक्ष तक ले जाए ।। वैसे तो तीर्थंकर की कृपा प्राप्त होते ही आरोग्य आदि की प्राप्ति हो ही जाती है, फिर भी कल्याण के अभिलाषी जीवों को आरोग्यादि भावों का अति महत्त्व है, जिसके कारण वे उसे अलग से याचना के रूप में व्यक्त करते हैं तथा कल्याण की प्राप्ति में यह तीन (भाव आरोग्य, बोधि और समाधि) अत्यंत महत्त्व के अंग हैं। उनका महत्त्व अत्यंत स्पष्ट समझाने के लिए अलग ग्रहण किया गया है, ऐसा प्रतीत होता है । इस गाथा का उच्चारण करते हुए परमात्मा का स्मरण कर मस्तक झुकाकर प्रार्थना करनी चाहिए कि, 'हे भगवंत ! मैं अनंतकाल से भावरोग से व्यथित हूँ । उसके कारण मेरे द्रव्य रोगों को भी पार नहीं आता । इस रोग को दूर करने के लिए परम आरोग्य को प्राप्त किए हुए हे परमात्मा ! आपसे भाव आरोग्य एवं उसकी कारणभूत बोधि तथा समाधि की याचना करता हूँ । हे नाथ ! यदि मुझ में योग्यता लगे, तो कृपा करके मुझे औषध प्रदान करें ।' चंदेसु निम्मलयराः अनेक चंद्रों23 से अधिक निर्मल, 23. मूल में चंदेसु' में सप्तमी विभक्ति हैं, परन्तु वह पंचमी के अर्थवाली है । प्राकृत में इस प्रकार अर्थ के भेद से बहुत बार विभक्ति का भेद देखा जाता हैं ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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