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________________ २१० सूत्र संवेदना कित्तिय-वंदिय-महिआ : कीर्तन किए हुए, वंदन किए हुए और पूजा किए हुए, भगवान के जो जो नाम हैं, उन नामों से संबंधित गुणों को एवं भगवान के लोकोत्तर जीवन चरित्र को हृदयस्थ करके उन गुणों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नपूर्वक उनका नामोच्चारण करना, वह कीर्तन है । मन से उनके विशिष्ट गुणों के प्रति बहुमान का भाव उत्पन्न करके, मस्तक झुकाकर अंजली पूर्वक वंदामि - वंदे आदि शब्दों का उच्चारण करना वंदन है और चंदन पुष्प-धूप आदि द्वारा परमात्मा की पूजा करना पूजन20 है । अब इस प्रकार कीर्तन-वंदन और पूजन किए हुए वे कौन हैं, यह बताएँगे । जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा : जो लोक में उत्तम हैं (और) सिद्ध हैं, ऐसे ये (परमात्मा)। परमात्मा लोक में उत्तम हैं अर्थात् सर्व जीवों में वे श्रेष्ठ हैं । परमात्मा ने प्रबल पुरुषार्थ करके कलंकभूत मोहनीयादि कर्म को दूर किया है । इसलिए वे अन्य जीवों की अपेक्षा उत्तम हैं । दूसरी तरह सोचें तो 'तम' याने 'अंधकार' एवं 'उत' याने 'ऊँचे उठे हुए' । इस तरह उत्तम का अर्थ 'अज्ञानरूपी अंधकार से ऊपर उठे हुए' होता है । परमात्मा ने अज्ञानरूपी अंधकार को छेदकर ज्ञान का ऊँचा प्रकाश प्राप्त किया है । इसलिए वे उत्तम हैं । परमात्मा सिद्ध हैं । 'सित्' याने बंधे हुए 'द्ध' याने ध्मात = जलाए हुए। अतः जिन्होंने बंधे हुए कर्मों को शुक्लध्यान की अग्नि द्वारा जला दिया हो उन्हें सिद्ध कहा जाता है ।21 20. उक्तं च चूर्णो - प्रशस्तवागादीनां दानं वंदणं, नस्यनानि अञ्जलिबन्धादिबहुमानादिप्रणिधानादिभिः सम्यग्मानादीनि 'पूय' त्ति गंधमाल्यादिभिः उक्तं च उमास्वातिवाचकेन पूजाश्च गन्धमाल्याधिवासधूपदीपाद्यैः । - चैत्यवंदन महाभाष्ये 21 उत्तमाः - प्रधानाः, ऊद्धर्वं वा तमस इत्युत्तमसः, ‘उत् प्राबल्योर्ध्वगमनोच्छेदनेषु' इति वचनात् प्राकृतशैल्या पुनरुत्तमा उच्यन्ते; ‘सिद्धाः' इति सितं - बद्धम्, ध्मातमेषामिति सिद्धाः कृतकृत्या इत्यर्थः; - श्री ललित विस्तरा
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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