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सूत्र संवेदना
२२. नेमि : चक्र की नेमि (घूमती हुई वाड) की तरह धर्मरूप चक्र की नेमि (मर्यादा) को स्थापन करनेवाले थे इसलिए 'नेमि' यह सामान्य अर्थ है तथा गर्भ के प्रभाव से माता ने 'रिष्ट' रत्नों की महा 'नेमि' (रेल) देखी इसलिए 'रिष्टनेमि' तथा उसके पूर्व में अपश्चिम वगैरह शब्दों की तरह निषेध वाचक14 'अ' लगाकर 'अरिष्टनेमि' नाम रखा, यह विशेष अर्थ है ।
२३. पार्श्व : सब भावों को पश्यति अर्थात् देखें, वे 'पार्श्व' यह नियुक्ति से सामान्य अर्थ है तथा गर्भ के प्रभाव से रात्रि में शय्या में सोई हुई माता ने अंधकार में भी काला सर्प देखा, यह गर्भ का प्रभाव मानकर ‘पश्यति' अर्थात् देखे, इसलिए 'पार्श्व' नाम रखा तथा वैयावच्च करनेवाले 'पार्श्व' यक्ष के नाथ होने से ‘पार्श्वनाथ' नाम रखा । यहाँ भी भीमसेन के बदले भीम की तरह पार्श्वनाथ के बदले 'पार्श्व', यह विशेष अर्थ है ।
२४. वर्द्धमान :जन्म से ही जो ज्ञानादि गुणों से वृद्धिमान थे, वे 'वर्द्धमान'; यह सामान्य अर्थ है तथा भगवंत गर्भ में पधारे, तब से उनके ज्ञातृकुल में धन, धान्य वगैरह विविध वस्तुओं की वृद्धि हुई, इसलिए मातापिता ने 'वर्द्धमान' नाम रखा, यह विशेष अर्थ है । इन गाथाओं का उच्चारण करते हुए साधक सोचता है कि,
"मेरे प्रभु के नाम भी कितने अद्भुत हैं । उनके नाम में उनके जैसे बनने का मार्ग समाया है । प्रभु ! मेरे जैसे निःसत्त्व मूर्ख के लिए साधना करने के अन्य उपाय तो अति दुष्कर हैं, पर सिर्फ
आपके नाम के साथ मेरा नाता जुड़ जाए, तो अनंत तीर्थंकर भगवंत के साथ मेरे शुद्ध स्वरूप का नाता जुड़ जाएगा । आपके नाम का कीर्तन करके, आप जैसा बनना चाहता हूँ । हे कृपालु ! मेरी इस इच्छा को साकार कीजिएगा ।'
14. 'रिष्ट' शब्द अमंगलवाचक होने से पूर्व में अकार रखकर 'अरिष्ट' ऐसा मंगल नाम
किया है।