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लोगस्स सूत्र
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९. सुविधि : 'सु' अर्थात् सुंदर और 'विधि' अर्थात् सर्व विषयों में जिनकी कुशलता है, वह 'सुविधि' यह सामान्य अर्थ है तथा भगवान का गर्भ में प्रवेश हुआ तभी से माता को सु (सुंदर) विधि (सर्व विषय में कुशलता) प्रकट होने से उनका नाम सुविधि रखा तथा भगवान के पुष्प की कलियों जैसे सुंदर दाँत होने से उनका दूसरा नाम 'पुष्पदंत' रखा, यह विशेष अर्थ है ।
१०. शीतल : सर्व प्राणियों के संतापों का नाश करके शीतलता प्रदान करनेवाले 'शीतल' यह सामान्य अर्थ है तथा भगवंत जब गर्भ में आए, तब भगवान के पिता को हुआ पित्त का दाह जो किसी उपाय से शांत नहीं हो रहा था वह दाह गर्भ के प्रभाव से माता के हस्तस्पर्श से शांत हो गया, इसलिए पुत्र का नाम 'शीतल' रखा, यह विशेष अर्थ है ।
११. श्रेयांस : जगत् के सर्व जीवों द्वारा जो अति प्रशंसनीय है, वह श्रेयान् अथवा 'श्रेयस्' अर्थात् कल्याणकारी - 'अंस' अर्थात् कंधे । अतः जिनके कंधे कल्याणकारी है वह ' श्रेय + अंस = श्रेयांस, यह सामान्य अर्थ है तथा भगवंत गर्भ में थे, तब पहले कोई जिसका उपभोग नहीं कर सकते थे, वैसी देवाधिष्ठित शय्या का माता ने उपभोग किया, जिससे उनका श्रेयः (कल्याण) हुआ, इसलिए पुत्र का नाम श्रेयांस रखा, यह विशेष अर्थ है ।
१२. वासुपूज्य : 'वसु' जाति के देवों के भगवंत पूज्य थे इसलिए 'वासुपूज्य' कहलाये यह सामान्य अर्थ है तथा जब गर्भ में थे तब वसु अर्थात् सुवर्ण द्वारा वासव (इन्द्र) ने राजकुल की पूजा की थी, इसलिए 'वासुपूज्य' अथवा वसुपूज्य राजा के पुत्र इसीलिए वासुपूज्य कहलाए, यह विशेष अर्थ है ।
7. माता ने गर्भ की महिमा से सुंदर विधिपूर्वक धर्म - आराधना की, इसलिए 'सुविधि' ऐसा नाम रखा, ऐसा भी अन्यत्र कहा गया है ।
प्रत्यूष
8. घर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, चिंतामणि)
और प्रभास
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ये वसु जाति के देव है । (शब्द