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लोगस्स सूत्र
होनेवाले आदर का भाव गुणप्राप्ति में विघ्न करनेवाले कमो का नाश करता है और गुणप्राप्ति का कारण बनता है ।
प्रत्येक भगवान के नाम के अर्थ सामान्य से और विशेष से दो प्रकार से होते हैं, अभी उन दो प्रकार के अर्थों का विभाग बताया जाएगा ।
चौबीस भगवान के नाम के सामान्य और विशेष अर्थ :
१. 'उसभ' : सामान्य अर्थ याने प्रत्येक भगवान को लागू हो ऐसा अर्थ। 'परमपद' को जो 'ऋषति' = 'प्राप्त करे' वह ऋषभ । 'उसभ' की छाया वृषभ' भी होती है, इसका अर्थ 'वर्षति इति वृषभः' अर्थात् दुःखरूप अग्नि से जलते हुए जगत् को जो देशनारूपी जल की वृष्टि से शांत करे, वह 'वृषभ', यह सामान्य अर्थ हुआ । विशेष अर्थ को सोचें तो प्रथम भगवान की जंघा में वृषभ का लांछन (चिह्न) था तथा श्री मरुदेवी माता ने चौदह स्वप्नों में प्रथम वृषभ को देखा था, इसलिए उन का नाम 'वृषभ' अथवा 'ऋषभ' रखा गया।
२. अजित : परिषहों और उपसों वगैरह से जो पराजित नहीं हुए वह 'अजित', यह सामान्य अर्थ और भगवान गर्भ में थे, तब गर्भ के भाव से माता पासा खेलने में अपने पति से पराजित नहीं हुई, अजित रही; इसलिए भगवान का नाम 'अजित' रखा, यह विशेष अर्थ है ।
३. सम्भव : जिनमें चौतीश अतिशय रूप गुण विशेषतया संभव हैं, वे 'सम्भव' अथवा जिनकी स्तुति करने से स्तुति करनेवाले को 'शं' सुख 'भवति' = प्राप्त होता है, वह 'शंभव', इसका प्राकृत नियमानुसार ‘संभव' होता है - यह सामान्य अर्थ हैं तथा भगवंत जब गर्भ में आए तब देश में अधिक धान्य (फसल) की पैदावार (संभावना) हुई, इसलिए उनका नाम ‘संभव' रखा गया, यह विशेष अर्थ है ।
४. अभिनन्दन : जिनका इन्द्र वगैरह ‘अभिनंदन' (स्तुति) करें, वह 'अभिनन्दन' यह सामान्य अर्थ और प्रभु गर्भ में आए तब से इन्द्र ने बार - 4. सामान्य अर्थात् सब में संबंधित हो वैसा और विशेष अर्थात् उसी तीर्थंकर से संबंधित हो वैसा।