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सूत्र संवेदना उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिनं(णं)दणं च सुमइं च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ।।२।। सुविहिं च पुष्पदंतं, सीअलसिजंसवासुपुजं च । विमलमणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ।।३।। कुंथु अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च ।
वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च ।।४।। श्री ऋषभदेव और अजितनाथ को मैं वंदन करता हूँ तथा संभवनाथ, अभिनंदनस्वामी, सुमतिनाथ, पद्मप्रभस्वामी, सुपार्श्वनाथ और चंद्रप्रभस्वामी को वंदन करता हूँ ।।२।।
जिनका दूसरा नाम ‘पुष्पदंत' है, ऐसे सुविधिनाथ, शीतलस्वामी, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्यस्वामी तथा विमलनाथ, अनंतनाथ और धर्मनाथ तथा शांतिनाथ को वंदन करता हूँ ।।३।।
कुंथुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ तथा मुनिसुव्रतस्वामी और नमिजिन को वंदन करता हूँ । अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ तथा वर्धमान स्वामी को वंदन करता हूँ ।।४।। विशेषार्थ :
भरतक्षेत्र के इस अवसर्षिणी काल के ऋषभदेव से लेकर महावीरस्वामी तक के चौबीस तीर्थंकरों के नाम गुणयुक्त हैं । वे नाम भगवान की आत्मा गर्भ में आने से बननेवाले विशेष प्रसंगों के कारण दिए गए हैं । सभी नामों
का अर्थ जैसे विशेष से उन - उन भगवान के लिए घटते हैं, वैसे सामान्य से प्रत्येक भगवान के लिए भी घट सकते हैं । इस प्रकार भगवान की विशेषता के कारण दिए गए तथा व्युत्पत्ति के अनुसार सामान्य से प्रत्येक भगवान को भी लागू पड़ते नामों को वैसे गुणों से युक्त देखने से उन गुणवानों के प्रति हृदय में आदर का भाव प्रकट होता है । इस गुण के प्रति