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सूत्र संवेदना
आरुग्ग-बोहि-लाभं, समाहिवरमुत्तमं दितु ।।६।। आरोग्यबोधिलाभं उत्तमं समाधिवरं ददतु ।। ६ ।। आरोग्य के लिए बोधिलाभ और श्रेष्ठ और उत्तम समाधि प्रदान करें।।६।। चंदेसु निम्मलयरा, आइछेसु अहियं पयासयरा, चन्द्रेभ्यो निर्मलतराः आदित्येभ्योऽधिकं प्रकाशकराः चन्द्रों से अधिक निर्मल, सूर्यों से अधिक प्रकाश करनेवाले सागरवरगंभीरा, सिद्धा मम सिद्धिं दिसंतु ।।७।। सागरवरगम्भीराः सिद्धाः मम (मह्यम्) सिद्धिं दिशन्तु ।
श्रेष्ठ सागर से भी गंभीर ऐसे सिद्ध भगवंत मुझे मोक्ष प्रदान करें । विशेषार्थ : लोगस्स उज्जोअगरे : लोक को उद्योत करनेवाले (परमात्मा का मैं कीर्तन करूँगा)
भगवान चौदह राजलोकरूप समग्र लोक को अपने केवलज्ञान से देखते हैं और चौदह राजलोक में रहे हुए तमाम पदार्थों के स्वरूप को वे जगत् के समस्त जीवों को बताते हैं । इस प्रकार जगत् में रहे हुए तमाम पदार्थों का ज्ञान करवाने द्वारा भगवान जगत् के तमाम पदार्थो को प्रकाशित करते हैं । इसलिए उनको लोक को उद्योत करनेवाले कहा जाता है ।।
अमावस्या की रात्रि के घोर अंधकार में सामने रही हुई चीज भी नहीं दिखाई देती, जिसके कारण बहुत सी जरूरी चीज भी नहीं मिलती और अनावश्यक वस्तुएँ टकराया करती हैं । अंधेरे के कारण बहुत बार साँप में रस्सी का और रस्सी में साँप का भ्रम हो जाता है, बाँस में मनुष्य की कल्पना होती है और मनुष्य में भूत का भ्रम होता है, लेकिन प्रकाश होते ही ऐसे भ्रम टूट जाते हैं । इसी तरह भव्य जीके को अनादिकाल से जो स्व-पर के विषय में भ्रम है, वह भगवान द्वारा दिए गए ज्ञान से नष्ट हो जाता है।
भगवान ने अपने ज्ञान से वस्तु को जैसी है, वैसी देखी । उन्होंने जड़ पदार्थ भी देखें और जीव द्रव्य भी देखा । जड़ और चेतन सृष्टि का यथार्थ