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लोगस्स सूत्र
. १८९ सुविहिं च पुष्पदंतं, सीअल-सिजुस-वासुपुजं च, सुविधिं पुष्पदन्तं च शीतल-श्रेयांस वासुपूज्यान् च जिनका दूसरा नाम पुष्पदंत है ऐसे सुविधिनाथ को, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ
और वासुपूज्यस्वामी को, विमलमणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ।।३।। विमलमनन्तं च जिनं धर्मं च शान्तिं वन्दे ।। ३ ।। .. विमलनाथ और अनंतजिन को, धर्मनाथ को और शांतिनाथ को मैं वंदन करता हूँ ।।३।। कुंथु अरं च मल्लिं, मुणिसुव्वयं नमिजिणं च, वंदे कुन्थुमरं च मल्लिं मुनिसुव्रतं नमिजिनं च वन्दे । कुन्थुनाथ, अरनाथ और मल्लिनाथ को, मुनिसुव्रतस्वामी और नमिजिन को मैं वंदन करता हूँ। रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च वंदामि ।।४।। तथा अरिष्टनेमिं पार्वं च वर्धमानं वन्दे ।। ४ ।। तथा अरिष्टनेमि को, पार्श्वनाथ को और वर्धमानस्वामी को मैं वंदन करता हूँ ।।४।। एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला एवं मया अभिष्टुताः विधूतरजोमलाः इस प्रकार मेरे द्वारा स्तुति किए हुए, वे तीर्थंकर जिन्होंने कर्मरज और मैल दूर किए हैं पहीण-जर-मरणा जिणवरा, चउवीसंपि तित्थयरा मे पसीयतु ।।५।। प्रक्षीणजरामरणाः जिनवराः चतुर्विंशति अपि तीर्थंकरा मे प्रसीदन्तु ।। ५ ।। जिन्होंने वृद्धत्व एवं मरण भय का अत्यंत नाश किया है, जिनों में श्रेष्ठ, चौबीसों तीर्थंकर मेरे ऊपर प्रसन्न हों ।।५।। कित्तिय-वंदिय-महिया, जे लोगस्स उत्तमा सिद्धा, ए कीर्तितवन्दितमहिता: ये लोकस्य उत्तमाः सिद्धाः एते कीर्तन किए हुए, वंदन किए हुए, पूजन किए हुए, जो लोक में उत्तम हैं और सिद्ध हैं, ऐसे यह (परमात्मा मुझे)