________________
लोगस्स सूत्र
१८७
कायोत्सर्ग पारने के बाद तीर्थंकरों के नामनिक्षेप की भक्ति करने के लिए लोगस्स बोलते हैं ।
साधु और श्रावक को करने योग्य छ आवश्यक में दूसरा आवश्यक 'चउवीसत्थो' है । 'चउवीसत्थो' अर्थात् चौबीस भगवान की स्तवना। यह चउवीसत्थो आवश्यक भी लोगस्स सूत्र द्वारा संपन्न होता है । इस सूत्र का विशेषार्थ आवश्यक नियुक्ति, ललित विस्तरा, योगशास्त्र, धर्मसंग्रह, चैत्यवंदन भाष्य इत्यादि ग्रंथों में है । हमने मुख्यतया ललित विस्तरा से यहाँ विशेषार्थ लिया है । मूल सूत्र :
लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली ।।१।। उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ।।२।। सुविहिं च पुष्पदंतं, सीअल-सिजुस-वासुपुजं च । विमलमणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ।।३।। कुंथु अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च ।।४।। एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला पहीण-जर-मरणा । चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयतु ।।५।। कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरुग्ग-बोहि-लाभ, समाहिवरमुत्तमं किंतु ।।६।। चंदेसु निम्मलयरा, आइछेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ।।७।। पद-२८
संपदा-२८
अक्षर-२५६