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________________ अन्नत्थ सूत्र जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि जब तक " नमो अरिहंताणं" पद बोलकर कायोत्सर्ग न पारुँ । १८१ # इन शब्दों द्वारा साधक वह कायोत्सर्ग में कब तब रहेगा, उस मर्यादा को बताता है । जब कायोत्सर्ग पारना हो तब 'नमो अरिहंताणं' पद का प्रयोग करके वह कायोत्सर्ग को पूर्ण करता है । क्योंकि उसकी प्रतिज्ञा है कि, तक मैं अरिहंत भगवान को नमस्कार करके क्रायोत्सर्ग न पारु तब तक मैं अपनी काया को वोसिराता हूँ । जब प्रतिज्ञा में अरिहंत भगवंत को नमस्कारं द्वारा कायोत्सर्ग पारने की बात है । इसलिए 'नमो अरिहंताणं' बोलकर ही कायोत्सर्ग पारना चाहिए । “नमो अरिहंताणं" बोलते समय नजर के सामने अष्ट प्रातिहार्य युक्त अरिहंत भगवान हैं एवं मैं उनको नमन करता हूँ, ऐसा भाव उत्पन्न करना है, पूर्वाचार्यों की परंपरा से 'नमुक्कारेणं' पद से 'नमो अरिहंताणं' बोलने की ही परम्परा है, इसलिए मनचाहे तरीके से नमस्कार कर पूर्वाचार्यों की इस परंपरा को नहीं तोड़ना चाहिए । इस " नमो अरिहंताणं" को दूसरी भाषा में बोलने पर भी दोष लगता है क्योंकि यह मंत्राक्षर है एवं मंत्राक्षर के पदों के बदले उनके अर्थवाले दूसरे पद बोलने से फल प्राप्त नहीं होता । ताव कार्य ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि : तब तक काया को कायोत्सर्ग की मुद्रा द्वारा, वाणी को मौन द्वारा एवं मन को ध्यान में स्थिर करने द्वारा अशुभ योगवाली अपनी काया का मैं अत्यंत त्याग करता हूँ । । “वोसिरामि” शब्द में वि + उत् + सृज् धातु का उपयोग है जो छोड़ने या त्याग करने के अर्थ में प्रयुक्त होता है । वैसे तो उत् + सृज् धातु का अर्थ भी त्याग करना ही है, ऐसा होते हुए भी यहाँ वि + उत् + सृज् धातु का उपयोग किया है क्योंकि, कायोत्सर्ग करते समय अशुभ योगवाली काया का आत्यंतिक त्याग अपेक्षित है । जिस त्याग के बाद काया फिर से ऐसे अशुभ योग में न प्रवर्त्ते, ऐसे दृढ़ संकल्पवाले त्याग को व्युत्सर्ग माना गया है ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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