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________________ १८० सूत्र संवेदना है । घड़ा संपूर्णतया टूट जाए तब भग्न हुआ कहा जाता है; परन्तु यदि उसका गला वगैरह एक छोटा सा अंश ही टूट जाए, तो वह घड़ा खंडित हुआ माना जाता है । इस तरीके से कायोत्सर्ग तोड़ना अर्थात् कायोत्सर्ग की मर्यादा के बाहर की प्रवृत्ति कायोत्सर्ग में करना जैसे कि, कौन आया ? कौन गया ? उसको देखने के लिए दृष्टि लगानी, कौन क्या बात करता है उसको सुनने के लिए ध्यान देना । ऐसी कायोत्सर्ग की मर्यादा विहीन प्रवृत्ति से रुकने का प्रयत्न भी न करना इत्यादि से कायोत्सर्ग भग्न माना जाता है । परन्तु अगर कभी किसी साधक को अनादिकाल के बुरे संस्कारों के कारण या अचानक कोई आए तो दीख जाए, कोई बोलें तो कान खुल जाए, परन्तु उसको तुरंत ही उसमें से मन एवं इन्द्रियों को पीछे खींचने की इच्छा हो और तुरंत ही वह वहाँ से अपने मन या इन्द्रियों को पीछे खींच ले, तो ऐसे सापेक्ष साधक का कायोत्सर्ग कभी विपरीत प्रवृत्तिवाला हो, तो भी विराधित गिना जाता है, पर भग्न नहीं माना जाता । संक्षेप में, कायोत्सर्ग की मर्यादा से निरपेक्ष प्रवृत्ति भग्नता है एवं कायोत्सर्ग सापेक्ष होनेवाले अतिचार विराधना है। ___ कायोत्सर्ग का भंग या उसकी विराधना कायोत्सर्ग के पूर्णफल से साधक को वंचित रखती है । ऐसी विराधना इत्यादि कायोत्सर्ग द्वारा मन की स्थिरता प्राप्त करने में या अंतर्मुख बनने में अवरोधक बनती है । इसलिए एसा अनिष्ट न हो जाए, उसकी साधक को चिंता रहती है । अतः यह पद बोलते हुए वह अतीव सावधान बन जाता है । इन पदों का उच्चारण करते हुए साधक सोचता है, 'प्रभु ! काया की ममता को तोडकर, कर्मक्षय के लिए ही मैंने कायोत्सर्ग धर्म अपनाया है । यह मेरा लक्ष्य तभी सफल होगा जब कायोत्सर्ग का भंग या विराधना न हो । यह तभी सम्भव है जब पूर्ण उपयोग सहित, सत्त्व एवं समझ के साथ कायोत्सर्ग किया जाए, अतः हे प्रभु ! मुझे शुद्ध कायोत्सर्ग करने की शक्ति दीजिए।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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