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अनत्थ सूत्र
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कफ तथा वायु की सूक्ष्म संचार क्रिया शरीर में निरंतर चलती रहती है। काया का यह सूक्ष्म व्यापार अपने हाथ में नहीं, इसलिए अपवाद में गिना जाता है।
सुहुमेहिं दिद्विसंचालेहिं : सूक्ष्म रीति से दृष्टि हिलाने से ।
आंख का झपकना-मटकना (हिलना), सूक्ष्म तरीके से दृष्टि का घूमना, आंख का फड़कना - ये सहज क्रियाएँ हैं । इसलिए इन्हें अपवाद में गिनते हैं।
वैसे देखें तो कायोत्सर्ग में दृष्टि को किसी भी चेतन या अचेतन वस्तु पर स्थिर करनी होती है; परन्तु संभव है कि कई बार दृष्टि हिल जाए क्योंकि मन की तरह उसे भी स्थिर रखना दुष्कर है । यद्यपि महासत्त्वशाली पुरुष तो यह कर पाते हैं, परन्तु सामान्य आत्माओं के लिए यह पूरी तरह संभव नहीं होने से अपवाद में गिना जाता है ।
ये तीनों क्रियाएँ नियम से होती हैं, आगे के तीन प्रकार के आगार सहजता से होनेवाले थे, परन्तु उन्हें थोड़े समय के लिए रोकना संभव था, जब कि ये तीन प्रकार के सूक्ष्म संचार को रोकने के लिए अपना प्रयत्न काम नहीं करता । ये अवश्य ही होती हैं, इसलिए इस सूत्र में उनकी छूट रखी है। इस पद का उच्चारण करते हुए सोचना चाहिए,
“भगवंत ! मैं सब कुछ रोकने का प्रयत्न करूँ, तो भी ये सूक्ष्म क्रियाएँ रोकना मेरे बस में नहीं है। इसलिए इन क्रियाओँ की
छूट रखकर कायोत्सर्ग करता हूँ ।” ५. बाह्य निमित से उद्भव आगार :
एवामाइएहिं आगारेहिं : ये या इसके अलावा अन्य आगारों द्वारा...
श्वास लेने की क्रिया से लेकर यहाँ तक बारह आगार (छूट) बताए हैं, इनके अलावा इस पद से अन्य चार आगार बताए हैं । ये बाह्य निमित्त से उत्पन्न होते हैं ।